रविवार, 2 जून 2013

407. शगुन (क्षणिका)

शगुन

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हवा हर सुबह चुप्पी ओढ़ 
अँजुरी में अमृत भर 
सूर्य को अर्पित करती है 
पर सूरज है कि जलने के सिवा 
कोई शगुन नहीं देता।  

- जेन्नी शबनम (2. 6. 2013)
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