बहुरुपिया
(5 ताँका)
(5 ताँका)
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1.
हवाई यात्राकरता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुकता ही कभी।
2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा।
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा।
3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया।
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया।
4.
कहीं डँसे न
मानव-केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोलके
करें विष-वमन।
मानव-केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोलके
करें विष-वमन।
5.
साथ हमारा
धरा-नभ का नाता
मिलते नहीं
मगर यूँ लगता-
आलिंगनबद्ध हों।
-जेन्नी शबनम (16.4.2014)
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