शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

452. बहुरुपिया (5 ताँका)

बहुरुपिया 
(5 ताँका)

***

1.
हवाई यात्रा
करता ही रहता
मेरा सपना
न पहुँचा ही कहीं
न रुकता ही कभी। 

2.
बहुरुपिया
कई रूप दिखाए
सच छुपाए
भीतर में जलता
जाने कितना लावा। 

3.
कभी न जला
अंतस् बसा रावण
बड़ा कठोर
हर साल जलाया
झुलस भी न पाया। 

4.
कहीं डँसे न
मानव-केंचुल में
छुपे हैं नाग
मीठी बोली बोलके
करें विष-वमन। 

5.
साथ हमारा 
धरा-नभ का नाता  
मिलते नहीं  
मगर यूँ लगता-
आलिंगनबद्ध हों। 

-जेन्नी शबनम (16.4.2014)
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