बुधवार, 25 सितंबर 2013

419. पीर जिया की (7 ताँका)

पीर जिया की
(7 ताँका)

***

1.
आँखों की कोर
जहाँ पे चुपके से  
ठहरा लोर, 
कहे निःशब्द कथा 
मन अपनी व्यथा। 

2.
छलके आँसू 
बह गया कजरा 
दर्द पसरा, 
सुध-बुध गँवाए
मन है घबराए। 

3.
सह न पाए 
मन कह न पाए
पीर जिया की,  
फिर आँसू पिघले  
छुप-छुप बरसे।  

4.
मौसम आया 
बहाकर ले गया 
आँसू की नदी,  
छँट गई बदरी 
जो आँखों में थी घिरी।   

5.
मन का दर्द 
तुम अब क्या जानो 
क्यों पहचानो, 
हुए जो परदेसी
छूटे हैं नाते देसी। 

6. 
बैरंग लौटे 
मेरी आँखों में आँसू 
खोये जो नाते, 
अनजानों के वास्ते 
काहे आँसू बहते।  

7.
आँख का लोर 
बहता शाम-भोर, 
राह अगोरे 
ताख़े पर ज़िन्दगी 
नहीं कहीं अँजोर। 
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लोर- आँसू 
अँजोर- उजाला
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-जेन्नी शबनम (24.9.2013)
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