मंगलवार, 18 जनवरी 2011

204. अब मान ही लेना है

अब मान ही लेना है 

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तुम बहुत आगे निकल गए   
मैं बहुत पीछे छूट गई   
कैसे दिखाऊँ तुम्हें   
मेरे पाँव के छाले,   
तुम्हारे पीछे भागते-भागते   
काँटे चुभते रहे   
फिर भी दौड़ती रही   
शायद पहुँच जाऊँ तुम तक,   
पर अब लगता है   
ये सफ़र का फ़ासला नहीं   
जो तुम कभी थम जाओ   
और मैं भागती हुई   
पहुँच जाऊँ तुम तक,   
शायद ये वक़्त का फ़ासला है   
या तक़दीर का फ़ैसला   
हौसला कम तो न था   
पर अब मान ही लेना है!

- जेन्नी शबनम (14. 1. 2011)
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