बुधवार, 11 मई 2011

243. सपने पलने के लिए जीने के लिए नहीं (पुस्तक - 99)

सपने पलने के लिए जीने के लिए नहीं

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कामनाओं की एक फ़ेहरिस्त, बना ली हमने
कई छोटी-छोटी चाह, पाल ली हमने
छोटे-छोटे सपने, एक साथ सजा लिए हमने।  
आँखें मूँद बग़ल की सीट पर बैठी मैं
तेज़ रफ़्तार गाड़ी, जिसे तुम चलाते हुए
मेरे बालों को सहलाते भी रहो और
मेरे लिए कोई गीत गाते भी रहो
बहुत लम्बी दूरी तय करें, बेमक़सद
बस एक दूसरे का साथ
और बहुत सारी ख़ुशियाँ,
तुम्हारे हाथों बना कोई खाना
जिसे कौर-कौर मुझे खिलाओ
और फिर साथ बैठकर
बस मैं और तुम, खेलें कोई खेल,
हाथों में हाथ थामे
कहीं कोई, ऐतिहासिक धरोहर
जिसके क़दम-क़दम पर छोड़ आएँ, अपने निशाँ
कोई एक सम्पूर्ण दिन, जहाँ बातों में, वक़्त में
सिर्फ हम और तुम हों। 
तुम्हारी फ़ेहरिस्त में महज़ पाँच-छः सपने थे और
मैंने हज़ारों जोड़ रखे थे,
जानते हुए कि एक-एक कर सपने टूटेंगे और
ध्वस्त सपनों के मज़ार पर, मैं अकेली बैठी
उन यादों को जीयूँगी,
जो अनायास, बिना सोचे
मिलने पर हमने जिए थे, मसलन -
नेहरु प्लेस पर यूँ ही घूमना
मॉल में पिक्चर देखते हुए कहीं और खोए रहना
हुमायूँ का मक़बरा जाते-जाते
क़ुतुब मीनार देखने चल देना। 
तुमको याद है न
तुम्हारा बनाया आलू का पराठा
जिसका अंतिम निवाला मुझे खिलाया तुमने,
अस्पताल का चिली पोटैटो
जिसे बड़ी चाव से खाया हमने
और उस दिन फिर कहा तुमने
कि चलो वहीं चलते हैं,
हँसकर मैंने कहा था -
धत्त! अस्पताल कोई घूमने की जगह है
या खाने की!
जब भी मिले हम
फ़ेहरिस्त में कुछ नए सपने और जोड़ लिए,
पुराने सपने वहीं रहे
जो पूरे होने के लिए शायद थे ही नहीं,
जब भी मिले, पुराने सपने भूल
एक अलग कहानी लिख गए। 
अचानक कैसे सब कुछ ख़त्म हो जाता है
क्यों देख लिए जाते हैं ऐसे सपने
जिनमें एक भी पूरे नहीं होने होते हैं,
फ़ेहरिस्त आज भी, मेरे मन पर गुदी हुई है,
जब भी मिलना, चुपचाप पढ़ लेना
कोई इसरार न करना,
फ़ेहरिस्त के सपने, सपने हैं
सिर्फ़ पलने के लिए, जीने के लिए नहीं। 

- जेन्नी शबनम (9. 5. 2011)
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