मंगलवार, 13 मार्च 2012

330. तुम क्या जानो (तुकांत)

तुम क्या जानो

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हिज्र की रातें तुम क्या जानो
वस्ल की बातें तुम क्या जानो।  

थी लिखी कहानी जीत की हमने
क्यों मिल गई मातें तुम क्या जानो। 

था हाथ जो थामा क्या था मन में
जो पाई घातें तुम क्या जानो। 

न कोई रिश्ता यही है रिश्ता
ये रूह के नाते तुम क्या जानो। 

तय किए सब फ़ासले वक़्त के
क्यों हारी हसरतें तुम क्या जानो। 

'शब' की आज़माइश जाने कब तक
उसकी मन्नतें तुम क्या जानो। 

- जेन्नी शबनम (11. 3. 2012)
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