रविवार, 18 मार्च 2018

569. ज़िद्दी मन (क्षणिका)

ज़िद्दी मन  

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ज़िद्दी मन ज़िद करता है 
जो नहीं मिलता वही चाहता है  
तारों से भी दूर मंज़िल ढूँढता है  
यायावर-सा भटकता है  
ज़ीस्त में जंग ही जंग पर सुकून की बाट जोहता है  
ये मेरा ज़िद्दी मन अल्फ़ाज़ का बंदी मन  
ख़ामोशी ओढ़के जग को ख़ुदा हाफ़िज़ कहता है  
पर्वत-सी ज़िद ठाने, कतरा-कतरा ढहता है  
पल-पल मरता है, पर जीने की ज़िद करता है।  

- जेन्नी शबनम (18. 3. 2018)  
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