कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर
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कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर
जोखिमों की लम्बी क़तार को
बच-बचाकर लाँघ जाना
क्या इतना आसान है
बिना लहूलुहान पार करना?
हर एक लम्हा संघर्ष है
क़दम-क़दम पर द्वेष है
यक़ीन करना बेहद कठिन है
विश्वास पल-पल दम तोड़ता है
सरे-आम लुट जाते हैं सपने
ग़ैरों से नहीं अपनों से मिलते हैं धोखे
कोई कैसे कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आए?
कम्फ़र्ट ज़ोन की सुविधाएँ
नि:संदेह कमज़ोर बनाती हैं
अवरोध पैदा करती हैं
मन के विस्तार को जकड़ती हैं
संभावनाओं को रोकती हैं।
परन्तु कम्फ़र्ट ज़ोन के बाहर
एक विस्तृत संसार है
जहाँ संभावनाओं के ढेरों द्वार हैं
कल्पनाओं की सीढ़ियाँ हैं
उत्कर्ष पर पहुँचने के रास्ते हैं।
चुनने की समझदारी विकसित कर
शह-मात से निडर होकर
चलनी है हर बाज़ी
विफलता मिले तो रुकना नहीं
ठोकरों से डरना नहीं
बेख़ौफ़ चलते जाना है
रास्ता अनजान है मगर
संसार को परखना है
ख़ुद को समझना है
ताकि रास्ता सुगम बने
कामनाओं की फुलवारी से
मनमाफ़िक फूल चुनना है
जो जीवन को सुगन्धित करे।
अब वक़्त आ गया है
कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आकर
दुनिया को अपनी शर्तों से
मुट्ठी में समेटकर
जीवन में ख़ुशबू भरना है
कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आना है।
याद रहे एक कम्फ़र्ट ज़ोन से
निकल जाओ जब
दूसरा कम्फ़र्ट ज़ोन स्वयं बन जाता है
पर किसी कम्फ़र्ट ज़ोन को
स्थायी मत होने दो।
-जेन्नी शबनम (7.1.2021)
(पुत्री की 21वीं जन्मतिथि पर)
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