शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

753. ज़िन्दगी नहीं है (तुकान्त)

ज़िन्दगी नहीं है 

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बहुत कुछ था जो अब नहीं है   
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।
   
कश्मकश में उलझकर क्या कहें   
जो कुछ भी था अब नहीं है। 
  
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या   
कहने को बचा अब कुछ नहीं है। 
  
फ़िसलते नातों का ये दौर   
ख़तम होता अब क्यों नहीं है। 
  
रह-रहकर पुकारता है मन   
सब है पर अपना कोई नहीं है। 
  
'शब' की बातें कच्ची-पक्की   
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है। 

- जेन्नी शबनम (11. 11. 22)
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