सोमवार, 23 जनवरी 2017

536. मुआ ये जाड़ा (ठंड के हाइकु 10) पुस्तक 82, 83

मुआ ये जाड़ा  

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1.  
रज़ाई बोली-  
जाता क्यों नहीं जाड़ा,
अब मैं थकी   

2.  
फिर क्यों आया  
सबको यूँ कँपाने,  
मुआ ये जाड़ा   

3.  
नींद से भागे
रजाई मे दुबके  
ठंडे सपने   

4.  
सूरज भागा  
थर-थर काँपता,  
माघ का दिन   

5.  
मुँह तो दिखा-  
कोहरा ललकारे,  
सूरज छुपा   

6.  
जाड़ा! तू जा न-  
करती है मिन्नतें,
काँपती हवा   

7.  
रवि से डरा  
दुम दबा के भागा  
अबकी जाड़ा   

8.  
धुंध की शाल  
धरती ओढ़े रही  
दिन व रात   

9.  
सबको देती  
ले के मुट्ठी में धूप,  
ठंडी बयार   

10.  
पछुआ हवा  
कुनमुनाती गाती  
सूर्य शर्माता   

- जेन्नी शबनम (23. 1. 2017)  
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सोमवार, 16 जनवरी 2017

535. तुम भी न बस कमाल हो

तुम भी न बस कमाल हो  

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धत्त!
तुम भी न बस कमाल हो!  
न सोचते न विचारते  
सीधे-सीधे कह देते  
जो भी मन में आए  
चाहे प्रेम या गुस्सा  
और नाराज़ भी तो बिना बात ही होते हो  
जबकि जानते हो  
मनाना भी तुम्हें ही पड़ेगा  
और ये भी कि  
हमारी ज़िन्दगी का दायरा  
बस तुम तक  
और तुम्हारा बस मुझ तक  
फिर भी अटपटा लगता है  
जब सबके सामने  
तुम कुछ भी कह देते हो  
तुम भी न बस कमाल हो!  

- जेन्नी शबनम (16. 1. 2017)
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रविवार, 1 जनवरी 2017

534. जीवन को साकार करें (क्षणिका)

जीवन को साकार करें 

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अति बुरी होती है  
साँसों की हो या संयम की  
विचलन की हो या विभोर की  
प्रेम की हो या परित्याग की  
जीवन सहज, निरंतर और मंगल है  
अतियों का त्यागकर, सीमित को अपनाकर  
जीवन के लय में बहकर  
जीवन का सत्कार करें, जीवन को साकार करें  

- जेन्नी शबनम (1. 1. 2017)
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