गुरुवार, 16 जुलाई 2009

72. नेह-निमंत्रण तुम बिसरा गए

नेह-निमंत्रण तुम बिसरा गए

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नेह-निमंत्रण तुम बिसरा गए
फिर आस खोई तो क्या हुआ?
सपनों के बिना भी हम जी लेंगे
मेरा दिल टूटा तो क्या हुआ?

मुसकान तुम्हारी, मेरा चहकना
फिर हँसी रोई तो क्या हुआ?
यक़ीन हम पर न तुम कर पाए
मेरा दम्भ हारा तो क्या हुआ?

ख़्वाबों में भी जो तुम आ जाओ
तन्हा रात मिली तो क्या हुआ?
मन का पिंजरा, अब भी है खुला
मेरा तन हारा तो क्या हुआ?

तुम तक पहुँचती, सब राहों पर
अंगारे बिछे भी तो क्या हुआ?
इरादा किया, तुम तक है पहुँचना
पाँव ज़ख़्मी मेरा तो क्या हुआ?

मुक़द्दर का ये खेल देखो
फिर मात मिली तो क्या हुआ?
अजनबी तुम बन गए, अब तो
फिर आघात मिला तो क्या हुआ?

मुश्किल है, फिर भी है जीना
ज़िन्दगी सौग़ात मिली तो क्या हुआ?
उम्मीद की उदासी, रुख़सत होगी
अभी वक़्त है ठहरा तो क्या हुआ ?

- जेन्नी शबनम (24. 5. 2009)
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71. कोई बात बने (अनुबन्ध/तुकान्त) (पुस्तक- नवधा)

कोई बात बने

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ज़ख़्म गहरा हो औ ताज़ा मिले, तो कोई बात बने
थोड़ी उदासी से, न कोई ग़ज़ल न कोई बात बने

दस्तूर-ए-ज़िन्दगी, अब मुझको न बताओ यारो
एक उम्र जो फिर मिल जाए, तो कोई बात बने 

मौसम की तरह हर रोज़, बदस्तूर बदलते हैं वो
गर अब के जो न बदले मिज़ाज, तो कोई बात बने 

रूठने-मनाने की उम्र गुज़र चुकी, अब मान भी लो
एक उम्र में जन्म दूजा मिले, तो कोई बात बने 

उनके मोहब्बत का फ़न, बड़ा ही तल्ख़ है यारो
फ़क़त तसव्वुर में मिले पनाह, तो कोई बात बने 

रख आई 'शब' अपनी ख़ाली हथेली उनके हाथ में
भर दें वो लकीरों से तक़दीर, तो कोई बात बने

-जेन्नी शबनम (15. 7. 2009)
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