अनुभूतियों का सफ़र
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अनुभूतियों के सफ़र में
संभावनाओं को ज़मीन न मिली,
हताश हूँ, परेशान हूँ
मगर, हार की स्वीकृति, मन को नहीं सुहाती।
फिर-फिर उगने और उड़ने के लिए
पुरज़ोर कोशिश करती हूँ
कड़वे-कसैले से कुछ अल्फ़ाज़ मन को बेधते हैं
फिर-फिर जीने की तमन्ना में
हौसलों की बाग़वानी करती हूँ,
सँभलने और स्थिरता की मियाद
पूरी नहीं होती, कि सब ध्वस्त हो जाता है।
जाने कौन-सा गुनाह था, या किसी जन्म का शाप
अनुभूतियों के सफ़र में, महज़ कुछ फूल मिले
शेष काँटे ही काँटे
जो वक़्त-बेवक्त चुभते रहे, मन को बेधते रहे।
पर अब, संभावनाओं को जिलाना होगा
उसे ज़मीन में उगाना होगा
थके हों क़दम, मगर चलना होगा
आसमान छिन जाए, मगर
ज़मीन को पकड़ना होगा।
जीवन की अनुभूतियाँ संबल हैं और
जीवन की संभावना भी।
- जेन्नी शबनम (7. 5. 2020)
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