बुधवार, 16 नवंबर 2011

301. उम्र कटी अब बीता सफ़र (पुस्तक - 47)

उम्र कटी अब बीता सफ़र

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बचपन कब बीता बोलो
हँस पड़ा आईना ये कहकर
काले गेसुओं ने निहारा ख़ुद को
चाँदी के तारों से लिपटाया ख़ुद को। 

चाँदी के तारों ने पूछा
माथे की शिकन से हँसकर
किसका रस्ता अगोरा तुमने?
क्या ज़िन्दगी को हँसकर जीया तुमने?

ज़िन्दगी ने कहा सुनो जी
हँसने की बारी आई थी पलभर
फिर दिन महीना और बीते साल
समय भागता रहा यूँ ही बेलगाम। 

समय ने कहा फिर
ज़रा हौले ज़रा तमककर
नहीं हौसला तो फिर छोड़ो जीना
'शब' का नहीं कोई साथी रहेगी तन्हा। 

'शब' ने समझाया ख़ुद को
अपने आँसू ख़ुद पोछ फिर हँसकर,
बेरहम तक़दीर ने भटकाया दर-ब-दर
अच्छा है, लम्बी उम्र कटी, अब बीता सफ़र!

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2011)
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