सोमवार, 25 अप्रैल 2011

235. सब ख़ामोश हैं

सब ख़ामोश हैं

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बातें करते-करते
तुम मंदिर तक पहुँच गए
मैं तुम्हें देखती रही
मेरे लिए तुम्हारी आँखों में
क्या जन्म ले रहा है
यह तो नहीं मालूम
तुम क्या सोच रहे थे
पर मेरी ज़िद कि मुझे देखो
सिर्फ़ मुझसे बातें करो
तुम्हें नहीं पता
उस दिन मैंने क्या हार दिया
तुम तक पहुँचती राह को
छोड़ दिया
ईश्वर ने कहा था तुमसे
कि मुझको माँग लो,
मैंने उसकी बातें तुमको सुनने न दी
मेरी ज़िद कि सिर्फ़ मेरी सुनो
ईश्वर ने मुझे कहा -
आज वक़्त है
तुममें अपना प्रेम भर दूँ,
मैंने अनसुना कर दिया
मेरी ज़िद थी कि सिर्फ़ तुमको सुनूँ
जाने क्यों मन में यकीन था कि
तुममें मेरा प्रेम भरा हुआ है
अब तो जो है बस
मेरी असफल कोशिश
ख़ुद पर क्रोध भी है और क्षोभ भी
ये मैंने क्या कर लिया
तुम तक जाने का अंतिम रास्ता
ख़ुद ही बंद कर दिया
सच है प्रेम ऐसे नहीं होता
यह सब तक़दीर की बातें हैं
और अपनी तक़दीर उस दिन
मैं मंदिर में तोड़ आई
तुम भी हो मंदिर भी और ईश्वर भी
पर अब हम सब ख़ामोश हैं

- जेन्नी शबनम (19. 4. 2011)
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