गुरुवार, 31 जनवरी 2013

379. चकमा (क्षणिका)

चकमा 

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चलो आओ, हाथ थामो मेरा, मुट्ठी जोर से पकड़ो 
वहाँ तक साथ चलो, जहाँ ज़मीन-आसमान मिलते हैं 
वहाँ से सीधे नीचे छलाँग लगा लेते हैं 
आज वक़्त को चकमा दे ही देते हैं।  

- जेन्नी शबनम (31. 1. 2013)
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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

378. स्टैचू बोल दे (10 क्षणिका)

स्टैचू बोल दे 

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1. 
स्टैचू बोल दे
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जी चाहता है  
उन पलों को तू स्टैचू बोल दे  
जिन पलों में वह साथ हो  
और फिर भूल जा

2.
लाइफ़
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एक मुट्ठी ही सही  
तू उसके मन में चाहत भर दे  
लाइफ़ भर का मेरा काम  
चल जाएगा

3.
बैलेंस 
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भरोसे की पोटली में  
ज़रा-सा भ्रम भी बाँध दे  
सत्य असह्य हो तो  
भ्रम मुझे बैलेंस करेगा

4.
नम्बर लॉक
***   
उसके लम्स के कतरे  
तू अपनी उस तिजोरी में रख दे  
जिसमें चाभी नहीं नंबर लॉक हो  
मेरी तरह वो तुझसे  
जबरन न कर सकेगा  

5.
सेटलाइट
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अंतरिक्ष में  
एक सेटलाइट टाँग दे  
जो सिर्फ़ मेरी निगहबानी करे  
तुझे जब फ़ुर्सत हो रिवाइंड कर  
और मेरा हाल जान ले

6. 
कैलेण्डर 
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क़यामत का दिन  
तूने मुकरर्र तो किया होगा  
इस साल के कैलेण्डर में घोषित कर दे  
ताकि उससे पहले  
अपने सातों जन्म जी लूँ  

7.
सेविंग्स अकाउंट 
***  
अपना थोड़ा वक़्त  
तेरे बैंक के सेविंग्स अकाउंट में  
जमा कर दिया है  
न अपना भरोसा न दुनिया का  
अंतिम दिन कुछ वक़्त  
जो सिर्फ़ मेरा

8. 
मैनेजमेंट
*** 
मैं सागर हूँ  
मुझमें लहरें, तूफ़ान, ख़ामोशी, गहराई है  
इस दुनिया में भेजने से पहले  
मैनेजमेंट का कोर्स  
मुझे करा तो दिया होता  

9. 
बाय 
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मेरे कहे को सच न मान  
रोज़ 'बाय' कर लौटना होता है  
और उसने कहा-  
जाकरके आते हैं  
कभी न लौटा  

10.
कंफ़्यूज़
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बहुत कंफ़्यूज़ हूँ
एक प्रश्न का उत्तर दे-  
मुझे धरती क्यों बनाया?  
जबकि मन इंसानी!  

- जेन्नी शबनम (17. 1. 2013)  
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सोमवार, 7 जनवरी 2013

377. क्रान्ति-बीज बन जाना (पुस्तक 59)

क्रान्ति-बीज बन जाना


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रक्त-बीज से पनपकर 

कोमल पंखुड़ियों-सी खिलकर 

सूरज को मुट्ठी में भर लेना  

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना। 


नाज़ुक हथेलियों पर  

अंगारों की लपटें दहकाकर 

हिमालय को मन में भर लेना  

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना 


कोमल काँधे पर  

काँटों की फ़सलें उगाकर 

फूलों को दामन में भर लेना 

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना 


मन की सरहदों पर

सन्देहों के बाड़ लगाकर

प्यार को सीने में भर लेना 

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना। 

  

जीवन-पथ पर 

जब वार करे कोई अपना बनकर 

नश्तर बन पलटवार कर देना   

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना। 


अनुकम्पा की बात पर 

भिड़ जाना इस अपमान पर  

बन अभिमानी भले जीवन हार देना

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना   


सिर्फ़ अपने दम पर 

सपनों को पंख लगाकर 

हर हार को जीत में बदल देना 

तुम क्रान्ति-बीज बन जाना। 



-जेन्नी शबनम (7.1.2013)
[पुत्री के 13वें जन्मदिन पर]
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