जन्म-नक्षत्र...
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अपनी-अपनी जगह
आसमान में देदीप्तमान थे
कहीं संकट के कोई चिह्न नहीं
ग्रहों की दशा विपरीत नहीं
दिन का दूसरा पहर
सूरज मद्धिम-मद्धिम दमक रहा था
कार्तिक का महीना
अभी-अभी बीता था
मघा नक्षत्र पूरे शबाब पर था
सारे संकेत शुभ घड़ी बता रहे थे
फिर यह क्योंकर हुआ ?
यह आघात क्यों ?
जन्म-नक्षत्र ने
खोल दिए सारे द्वार
ज़मीं ही स्वर्ग बन गई तुम्हारे लिए
और मैं
छटपटाती रही
खोल दिए सारे द्वार
ज़मीं ही स्वर्ग बन गई तुम्हारे लिए
और मैं
छटपटाती रही
नरक भोगती रही
तुम्हारे स्वर्ग में
शुभ घड़ी शुभ संकेत
सब तुम्हारे लिए
नक्षत्र की शुभ दृष्टि
तुम पर
और मुझ पर टेढ़ी नज़र
ऐसा क्यों ?
- जेन्नी शबनम (नवम्बर 16, 2013)
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