गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

479. एक सांता आ जाता

एक सांता आ जाता 

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मन चाहता  
भूले भटके
मेरे लिए दोनों हाथों में तोहफ़ा लिए
काश! आज मेरे घर  
एक सांता आ जाता।  

गहरी नींद से मुझे जगा
अपनी झोली से निकाल थमा देता
मेरी हाथो में परियों वाली जादू की छड़ी
और अलादीन वाला जादुई चिराग। 

पूरे संसार को छू लेती
जादू की उस छड़ी से
और भर देती सबके मन में
प्यार ही प्यार, बहुत अपार। 

चिराग के जिन से कहती-
पूरी दुनिया को दे दो 
कभी ख़त्म न होने वाला अनाज का भंडार
सबको दे दो रेशमी परिधान   
सबका घर बना दो राजमहल
न कोई राजा न कोई रंक
फिर सब तरफ़ दिखता 
ख़ुशियों का रंग।  

काश! 
आज मेरे घर   
एक सांता आ जाता।  

- जेन्नी शबनम (25. 12. 2014)
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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

478. सपनों के झोले

सपनों के झोले  

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मुझे समेटते-समेटते    
एक दिन तुम बिखर जाओगे  
ढह जाएगी तुम्हारी दुनिया  
शून्यता का आकाश 
कर लेगा अपनी गिरफ़्त में तुम्हें  
चाहकर भी न जी सकोगे न मर सकोगे तुम, 
जानते हो
जैसे रेत का घरौंदा भरभराकर गिरता है  
एक झटके में  
कभी वैसे ही चकनाचूर हुआ सब  
अरमान भी और मेरा आसमान भी  
उफ़ के शब्द गले में ही अटके रह गए  
कराह की आवाज़ को आसमान ने गटक लिया  
और मैं ठंडी ओस-सी सब तरफ़ बिखर गई,  
जानती हूँ 
मेरे दर्द से कराहती तुम्हारी आँखें  
रब से क्या-क्या गुज़ारिश करती हैं    
सूनी ख़ामोश दीवारों पे 
तुम्हें कैसे मेरी तस्वीर नज़र आती है  
जाने कहाँ से रच लेते हो ऐसा संसार  
जहाँ मेरे अस्तित्व का एक कतरा भी नहीं  
मगर तुम्हारे लिए पूरी की पूरी मैं वहाँ होती हूँ,  
तुम चाहते हो  
बिंदास और बेबाक जीऊँ  
मर-मरकर नहीं जीकर जिन्दगी जीऊँ  
सारे इंतज़ाम तुम सँभालोगे, मैं बस ख़ुद को सँभालूँ  
शब्दों की लय से जीवन गीत गुनगुनाऊँ,  
बड़े भोले हो    
सपनों के झोले में जीवन समाते हो   
जान लो  
अरमान आसमान नहीं देते
बस भ्रम देते हैं।    

- जेन्नी शबनम (11. 12. 2014)  
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सोमवार, 1 दिसंबर 2014

477. झाँकती खिड़की (पुस्तक - 67)

झाँकती खिड़की

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परदे की ओट से
इस तरह झाँकती है खिड़की
मानो कोई देख न ले
मन में आस भी और चाहत भी
काश! कोई देख ले।

परदे में हीरे-मोती हो, या हो कई पैबन्द
हर परदे की यही ज़िंदगानी है
हर झाँकती नज़रों में वही चाह
कच्ची हो, कि पक्की हो
हर खिड़की की यही कहानी है।

कौन पूछता है, खिड़की की चाह
अनचाहा-सा कोई
धड़धड़ाता हुआ पल्ला ठेल देता है
खिड़की बाहर झाँकना बंद कर देती है
आस मर जाती है
बाहर एक लम्बी सड़क है
जहाँ आवागमन है, ज़िन्दगी है
पर, खिड़की झाँकने की सज़ा पाती है
अब वह न बाहर झाँकती है
न उम्र के आईने को ताकती है।

- जेन्नी शबनम (1. 12. 2014)
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