बुधवार, 26 अगस्त 2009

80. आँखों में इश्क़ भर क्यों नहीं देते हो (तुकान्त)

आँखों में इश्क भर क्यों नहीं देते हो

*******

दावा करते तुम, आँखों को मेरी पढ़ लेते हो
फिर दर्द मेरा तुम, समझ क्यों नहीं लेते हो? 

बारहा करते सवाल, मेरी आँखों में नमी क्यों है
माहिर हो, जवाब ख़ुद से पूछ क्यों नहीं लेते हो? 

कहते हो कि समंदर-सी, मेरी आँखें गहरी है
लम्हा भर उतरकर, नाप क्यों नहीं लेते हो? 

तुम्हारे इश्क़ की तड़प, मेरी आँखों में बहती है
आकर लबों से अपने, थाम क्यों नहीं लेते हो? 

हम रह न सकेंगे तुम बिन, जानते तो हो
फिर आँखों में मेरी, ठहर क्यों नहीं जाते हो? 

ज़ाहिर करती मेरी आँखें, तुमसे इश्क़ है
बड़े बेरहम हो, क़ुबूल कर क्यों नहीं लेते हो?

मेरे दर्द की तासीर, सिर्फ़ तुम ही बदल सकते हो
फिर मेरी आँखों में इश्क़, भर क्यों नहीं देते हो?

वक़्त का हिसाब न लगाओ, कहते हो सदा
'शब' की आँखों से, कह क्यों नहीं देते हो?

- जेन्नी शबनम (19. 8. 2009)
_____________________________________