एक शाम ऐसी भी
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एक शाम ऐसी भी, एक मुलाक़ात ऐसी भी
बहुत-बहुत ख़ास जैसी भी
जीवन का एक रंग यह भी, जीवन का एक पड़ाव यह भी
एक सुख ऐसा भी और एक भाव यह भी
ख़ाली सड़क पर दो मन, एक हाथ की दूरी पर दोनों मन
और ये दूरी मिटाने का जतन
आत्मीयता में डूबे मन, बतकही करते दोनों मन
और बहुत कुछ अनकहा समझने का प्रयत्न
न सिद्धांत की बातें न संस्कृति पर चर्चा
न समाज की बातें न सरोकारों पर चर्चा
न संताप की बातें न समझौतों पर चर्चा
न संघर्ष की बातें न संयमो पर चर्चा
पर होती रही बेहद लम्बी परिचर्चा
न शब्दों का खेल, न आश्वासनों का खेल
न अनुग्रह कोई,
न भावनाओं का मेल
न कोई कौतुहल न कोई व्यग्रता
धीमे-धीमे बढ़ते क़दम बिना किसी अधीरता
समय भी साथ चला हँसता-गाता-झूमता
कॉफी की गर्माहट नसों में घुल रही ज़रा-ज़रा
मीठे पान-सी लाली चेहरे पर ज़रा-ज़रा
ठंडी रात है और बदन में ताप ज़रा-ज़रा
ज़िन्दगी हँस रही है आज ज़रा-ज़रा
ख़ाली जीवन भी आज जैसे भरा-भरा।
- जेन्नी शबनम (20. 1. 2020)
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