सोमवार, 27 अगस्त 2012

370. मालिक की किरपा (पुस्तक - 88)

मालिक की किरपा

*******

धुआँ-धुआँ, ऊँची चिमनी 
गीली मिट्टी, साँचा, लथपथ बदन  
कच्ची ईंट, पक्की ईंट, और ईंट के साथ पकता भविष्य, 
ईंटों का ढेर
एक-दो-तीन-चार 
सिर पर एक ईंट, फिर दो, फिर दो की ऊँची पंक्ति 
खाँसते-खाँसते, जैसे साँस अटकती है  
ढनमनाता-घिसटता, पर बड़े एहतियात से   
ईंटों को सँभालकर उतारता 
एक भी टूटी, तो कमर टूट जाएगी,
रोज़ तो गोड़ लगता है ब्रह्म स्थान का  
बस साल भर और 
इसी साल तो, बचवा मैट्रिक का इम्तहान देगा
चौड़ा-चकईठ है, सबको पछाड़ देगा 
मालिक पर भरोसा है, बहुत पहुँच है उनकी 
मालिक कहते हैं-   
गाँठ में दम हो तो सब हो जाएगा,
एक-एक ईंट, जैसे एक-एक पाई 
एक-एक पाई, जैसे बचवा का भविष्य
जानता है, न उसकी मेहरारू ठीक होगी, न वो 
एक भी ढेऊआ डाक्टर को देके, काहे बर्बाद करे कमाई
ये भी मालूम है
साल दू साल और बस...
हरिद्वार वाले बाबा का दिया जड़ी-बूटी है न 
अगर नसीब होगा, बचवा का, सरकारी नौकरी का सुख देखेगा,
अपना तो फ़र्ज़ पूरा किया 
बाक़ी मालिक की किरपा...!
________________
ढनमनाता - डगमगाता 
गोड़ - पैर 
ढेऊआ - धेला / पैसा 
किरपा - कृपा
________________

- जेन्नी शबनम (1. 5. 2009)
___________________

बुधवार, 22 अगस्त 2012

369. कुछ सुहाने पल (मेरा प्रथम चोका) (चोका - 1)

कुछ सुहाने पल... 
(मेरा प्रथम चोका)

******* 

मुट्ठी में बंद 
कुछ सुहाने पल
ज़रा लजाते  
शरमा के बताते 
पिया की बातें
हसीन मुलाकातें  
प्यारे-से दिन  
जग-मग-सी रातें 
सकुचाई-सी 
झुकी-झुकी नज़रें
बिन बोले ही 
कह गई कहानी 
गुदगुदाती 
मीठी-मीठी खुशबू
फूलों के लच्छे 
जहाँ-तहाँ खिलते  
रात चाँदनी 
अँगना में पसरी
लिपट कर 
चाँद से फिर बोली -
ओ मेरे मीत  
झीलों से भी गहरे
जुड़ते गए 
ये तेरे-मेरे नाते
भले हों दूर
न होंगे कभी दूर     
मुट्ठी ज्यों खोली
बीते पल मुस्काए 
न बिसराए  
याद हमेशा आए
मन को हुलासाए !

- जेन्नी शबनम (जुलाई 30, 2012)

____________________________

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

368. संगतराश (पुस्तक - 82)

संगतराश

*******

बोलो संगतराश! 
आज कौन-सा रूप तुम्हारे मन में है?
कैसे सवाल उगे हैं तुममें?
अपने जवाब के अनुरूप बुत तराशते हो तुम 
और बुत को एक दिल भी थमा देते हो 
ताकि जीवन्त दिखे तुम्हें, 
पिंजड़े में क़ैद तड़फड़ाते पंछी की तरह  
जिसे सबूत देना है कि वह साँसें भर सकता है 
लेकिन उसे उड़ने की इजाज़त नहीं, न सोचने की। 
संगतराश! तुम बुत में अपनी कल्पनाएँ गढ़ते हो
चेहरे के भाव में अपने भाव मढ़ते हो
अपनी पीड़ा उसमें उड़ेल देते हो 
न एक शिरा ज़्यादा, न एक बूँद आँसू कम
तुम बहुत हुनरमन्द शिल्पकार हो,
कला की निशानी, जो रोज़-रोज़ तुम रचते हो 
अपने तहख़ाने में सजाकर रख देते हो  
जिसके जिस्म की हरकतों में सवाल नहीं उपजते हैं 
क्योंकि सवाल दागने वाले बुत तुम्हें पसन्द नहीं,
तमाम बुत, तुम्हारी इच्छा से आकार लेते हैं 
तुम्हारी सोच से भंगिमाएँ बदलते हैं  
और बस तुम्हारे इशारे को पहचानते हैं। 
ओ संगतराश!
कुछ ऐसे बुत भी बनाओ 
जो आग उगल सके 
पानी को मुट्ठी में समेट ले 
हवा का रुख़ मोड़ दे
और ऐसे-ऐसे सवालों के जवाब ढूँढ लाए  
जिसे ऋषि-मुनियों ने भी न सोचा हो
न किसी धर्म ग्रन्थ में चर्चा हो,
अपनी क्षमता दिखाओ संगतराश 
गढ़ दो, आज की दुनिया के लिए 
कुछ इंसानी बुत!

- जेन्नी शबनम (15. 8. 2012)
____________________

बुधवार, 15 अगस्त 2012

367. स्वतंत्रता दिवस (स्वतन्त्रता दिवस पर 20 हाइकु) पुस्तक 26-28

स्वतंत्रता दिवस 
(स्वतन्त्रता दिवस पर 20 हाइकु)

*******

1.
आई आज़ादी 
अहिंसा के पथ से
बापू का मार्ग। 

2.
फूट के रोए
देख के बदहाली 
वे बलिदानी। 

3.
डूब रही है 
सब मिल बचाओ
देश की नैया। 

4.
सोई है आत्मा 
स्वतंत्रता बाद भी 
ग़ुलाम मन। 

5.
कौन जो रोके 
चिथड़ों में बँटती 
हमारी ज़मीं। 

6.
वीर सिपाही 
जिनका बलिदान 
देश भुलाया।  

7.
देश को मिली 
भला कैसी आज़ादी?
मन ग़ुलाम।  

8.
हम आज़ाद 
तिरंगा लहराए 
सम्पूर्ण देश।  

9.
तिथि पंद्रह
अगस्त सैंतालिस 
देश-स्वतंत्र।  

10.
जनता ताके 
अमन की आशा से 
देश की ओर।  

11.
हमारा नारा 
भारत महान का 
सुने दुनिया।  

12.
सौंप गए वे 
आज़ाद हिन्दुस्तान 
ख़ुद मिटके

13.
आज़ादी संग  
ज़मीन-मन बँटे
दो टुकड़ों में।  

14.
मिली आज़ादी 
तिरंगा लहराया 
लाल किले पे।  

15.
गूँजी दिशाएँ 
वंदे मातरम से 
सम्पूर्ण देश।  

16.
जश्न मनाओ 
देश का त्योहार है 
आज़ादी-पर्व।  

17.
विस्मृत हुए 
अमर बलिदानी 
अपनों द्वारा।   

18.
हमको मिली 
भौगोलिक आज़ादी
मन ग़ुलाम। 

19.
स्वाधीन देश 
जिनकी बदौलत
नमन उन्हें।   

20.
जश्न मनाओ  
सब मिलके गाओ 
आज़ादी-गीत। 

- जेन्नी शबनम (15. 8. 2012)
____________________

सोमवार, 13 अगस्त 2012

366. त्योहार का मौसम

त्योहार का मौसम 

******* 

ऐ सुनो!   
तुम कहते हो   
हमारी बातें, त्योहार का मौसम 
कब आएगा, बताओ ये मौसम?   
हज़ारों बातें, मीठी यादें   
अब भी बंद है   
लकड़ी वाली पिटारी में   
जिसकी कुंजी खो गई थी   
पिछले बरस के त्योहार में   
ढेरों किस्से, मेरे हिस्से   
तह पड़े मेरी पिटारी में   
उमर ठिठकी, बरस बीता   
फिर भी न आता, ये त्योहार क्यों?   
ऐ कहो!   
कब तुड़वाने लाऊँ पिटारी   
कब तक रखूँ सँभाल के?   
दीवाली बीती, होली बीती   
बीता सावन, भादो भी   
अब भी नहीं आता   
बोलो ये त्योहार क्यों?   
ऐ सुनो!   
तुम कहते हो 
हमारी बातें, त्योहार का मौसम 
बताओ, कब आएगा   
ये त्योहार का मौसम।    

- जेन्नी शबनम (13. 8. 2012) 
____________________

रविवार, 12 अगस्त 2012

365. कृष्ण पधारे (कृष्ण जन्माष्टमी पर 7 हाइकु) पुस्तक 25, 26

कृष्ण पधारे (कृष्ण जन्माष्टमी पर 7 हाइकु)

*******

1.
भादो अष्टमी 
चाँद ने आँखें मूँदी
कृष्ण पधारे।  

2.
पाँव पखारे 
यशोदा के लाल के  
यमुना नदी। 

3.
रास रचाने 
वृन्दावन पधारे 
श्याम साँवरे। 

4.
मृत्यु निश्चित
अवतरित कृष्ण 
कंस का भय। 

5.
मथुरा जेल 
बेड़ियों में देवकी 
कृष्ण का जन्म। 

6.
अवतरित 
धर्म की रक्षा हेतु 
स्वयं ईश्वर।  

7.
सात बहनें 
परलोक सिधारी 
मोहन जन्मे। 

- जेन्नी शबनम (10. 8. 2012)
____________________

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

364. यादें (क्षणिका)

यादें

*******

यादें, बार-बार सामने आकर 
अपूर्ण स्वप्न का अहसास कराती हैं 
कभी-कभी मीठी-सी टीस दे जाती हैं 
कचोटती तो हर हाल में है, चाहे सुख चाहे दुःख 
शायद रुलाने के लिए यादें, ज़ेहन में जीवित रहती हैं। 

- जेन्नी शबनम (10. 8. 2012)
____________________

बुधवार, 8 अगस्त 2012

363. सिर्फ़ मेरा (क्षणिका)

सिर्फ़ मेरा

*******

ज़िन्दगी का अर्थ, किस मिट्टी में ढूँढें?
कौन कहे कि आ जाओ मेरे पास 
रिश्ते नाते अपने पराये, सभी बेपरवाह
किनसे कहें, एक बार याद करो मुझे, सिर्फ़ मेरे लिए 
बहुत चाहता है मन, कहीं कोई अपना, जो सिर्फ़ मेरा

- जेन्नी शबनम (8. 8. 2012)
___________________

शनिवार, 4 अगस्त 2012

362. मन किया

मन किया

*******

आज फिर से
तुम्हें जी लेने का मन किया
तुम्हारे लम्स के दायरे में
सिमट जाने का मन किया 
तुम्हारी यादों के कुछ हसीन पल
चुन-चुनकर 
मुट्ठी में भर लेने का मन किया
जिन राहों से हम गुज़रे थे 
साथ-साथ कभी 
फिर से गुज़र जाने का मन किया
शबनमी कतरे सुलगते रहे रात भर
जिस्म की सरहदों के पार जाने का मन किया 
पोर-पोर तुम्हें पी लेने का मन किया 
आज फिर से 
तुम्हें जी लेने का मन किया। 

- जेन्नी शबनम (4. 8. 2012)
__________________

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

361. रक्षा बंधन (राखी पर10 ताँका)

रक्षा बंधन (राखी पर 10 ताँका)

*******

1.
पावन पर्व 
दुलारा भैया आया 
रक्षा बंधन 
बहन ने दी दुआ 
बाँध रेशमी राखी !

2.
राखी त्योहार  
सुरक्षा का वचन 
भाई ने दिया 
बहना चहकती 
उपहार माँगती !

3.
राखी का पर्व 
सावन का महीना 
पीहर आई 
नन्हे भाई की दीदी 
बाँधा स्नेह का धागा !

4.
आँखों में पानी 
बहन है पराई 
सूनी कलाई
कौन सजाये अब 
भाई के माथे रोली !

5.
पूरनमासी 
सावन का महीना 
राखी त्योहार 
रक्षा-सूत्र ने बाँधा 
भाई-बहन नेह ! 

6.
घर परिवार
स्वागत में तल्लीन 
मंगल पर्व
राखी-रोली-मिठाई 
बहनों ने सजाई !  

7.
शोभित राखी 
भाई की कलाई पे
बहन बाँधी  
नेह जो बरसाती 
नेग भी है माँगती !

8.
प्यारा बंधन 
अनोखा है स्पंदन 
भाई-बहन
खुशियाँ हैं अपार
आया राखी त्योहार ! 

9.
चाँद चिंहुका 
सावन का महीना 
पूरा जो खिला
भैया दीदी के साथ 
राखी मनाने आया !

10.
बहन भाई 
बड़े ही आनंदित 
नेग जो पाया
बहन से भाई ने     
राखी जो बँधवाई !

- जेन्नी शबनम (अगस्त 2, 2012)

________________________________ 

360. राखी पर्व (राखी पर 15 हाइकु) पुस्तक- 23-25

राखी पर्व
(राखी पर 15 हाइकु)

*******

1.
भैया न जाओ
मेरी बलाएँ ले लो 
राखी बँधा लो। 

2.
बाट जोहते
अक्षत, धागे, टीका 
राखी जो आई।  

3.
बहन देती 
हाथों पे बाँध राखी  
भाई को दुआ। 

4.
राखी का सूत
बहनों ने माना 
रक्षा-कवच। 

5.
बहना खिली
रखिया बँधवाने   
भैया जो आया। 

6.
रंग-बिरंगी 
कतारबद्ध-राखी 
दूकानें सजी। 

7.
पावन पर्व
ये बहन भाई का  
रक्षा बंधन। 

8.
भूले त्योहार 
आपसी व्यवहार  
बढ़ा व्यापार।  

9.
चुलबुली-सी
कुदकती बहना 
राखी जो आई।   

10.
भाई का प्यार
राखी-पर्व जो आता  
याद दिलाता !

11.
मन भी सूना  
किसको बाँधे राखी 
भाई पीहर!

12.
नहीं सुहाता 
सब नाता जो टूटा  
रक्षा-बंधन। 

13,
नन्ही कलाई 
बहना ने सजाई 
देती दुहाई। 

14.
भाई है आया 
ये धागा खींच लाया  
है मज़बूत। 

15.
राखी जो आई  
भाई को खींच लाई  
बहना-घर। 

- जेन्नी शबनम (1. 8. 2012)
___________________