सोमवार, 5 जून 2023

759. पर्यावरण (10 हाइकु)

पर्यावरण

1.

भटक रहे 

जंगल-मरुस्थल 

जीव व जन्तु।   


2.

जंगल मिटा

बना है मरुस्थल 

आँखें हैं नम।


3.

कब उजड़े 

काँप रहे जंगल

रौद्र मानव। 


4.

बिछा पत्थर 

खोई पगडण्डी 

पाँव में चुभे। 


5.

दूषित जल

नदी है तड़पती 

प्यास की मारी। 


6.

कौन सुनेगा

उजड़ने की व्यथा

प्रकृति रोती। 


7.

ताल-तलैया

आसमान को ताके 

सूखते जाते। 


8.

नाग-सा डँसे

व्यभिचारी मानव

प्रकृति रोए। 


9.

शहर बना

पत्थरों का जंगल

मन वीरान। 


10.

पर्यावरण 

अब कैसे मुस्काए?

बड़ी लाचारी।


- जेन्नी शबनम (5.6.2023)

(पर्यावरण दिवस) 

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गुरुवार, 9 मार्च 2023

758. होली

होली 

***


1.

वासन्ती पर्व   

बन्धनों से हों मुक्त   

देती है सीख। 


2.

मन झूमता   

रंग की है बौछार   

मिलते यार। 


3.

हँसी-मज़ाक   

ये रंगीन-फुहार   

उम्र भुलाए। 


4.

फाग-तरंग   

हँसे मन मलंग   

खेलो रे रंग। 


5.

झूमके नाची   

अलसाई-सी देह   

होली के संग। 


6.

नशीला रंग   

मन को दिया रँग   

आओ खेले रंग।   


7.

होली रंगीन   

भिगोया जब तन   

मन भी रँगा। 


8.

फ़िज़ा रंगीन 

फागुन की फुहार 

मन क्यों सूना?


9.

रंग वही है

होली की खुमारी है,

मन  रँगा। 


- जेन्नी शबनम (8. 3. 23)

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सोमवार, 30 जनवरी 2023

757. मम्मी (मम्मी की दूसरी पुण्यतिथि पर)

मम्मी 
*** 
जीवन का दस्तूर   
सबको निभाना होता है   
मरने तक जीना होता है।   
तुम जीवन जीती रही   
संघर्षों से विचलित होती रही   
बच्चों के भविष्य के सपने   
तुम्हारे हर दर्द पर विजयी होते रहे   
पाई-पाई जोड़कर   
हर सपनों को पालती रही   
व्यंग्यबाण से खुदे हर ज़ख़्म पर   
बच्चों की खुशियों के मलहम लगाती रही।   
जब आराम का समय आया   
संघर्षों से विराम का समय आया   
तुम्हारे सपनों को किसी की नज़र लग गई   
तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार फिर बिखर गई   
तुम रोती रही, सिसकती रही   
अपनी क़िस्मत को कोसती रही।   
अपनी संतान की वेदना से   
तुम्हारा मन छिलता रहा   
उन ज़ख़्मों से तुम्हारा तन-मन भरता रहा   
अशक्त तन पर हजारों टन की पीड़ा   
घायल मन पर लाखों टन की व्यथा   
सह न सकी यह बोझ   
अंततः तुम हार गई   
संसार से विदा हो गई   
सभी दुःख से मुक्त हो गई।   
पापा तो बचपन में गुज़र चुके थे   
अब मम्मी भी चली गई   
मुझे अनाथ कर गई   
अब किससे कहूँ कुछ भी   
कहाँ जाऊँ मैं?   
तुम थी तो एक कोई घर था   
जिसे कह सकती थी अपना   
जब चाहे आ सकती थी   
चाहे तो जीवन बिता सकती थी   
कोई न कहता-   
निकल जाओ   
इस घर से बाहर जाओ   
तुम्हारी कमाई का नहीं है   
यह घर तुम्हारा नहीं है।   
मेरी हारी ज़िन्दगी को एक भरोसा था   
मेरी मम्मी है न   
पर अब?   
तुमसे यह तन, तुम-सा यह तन   
अब तुम्हारी तरह हार रहा है   
मेरा जीवन अब मुझसे भाग रहा है।   
तुम्हारा घर अब भी मेरा है   
तुम्हारा दिया अब भी एक ओसारा है   
पर तुम नहीं हो, कहीं कोई नहीं है   
तुम्हारी बेटी का अब कुछ नहीं है   
वह सदा के लिए कंगाल हो गई है।

- जेन्नी शबनम (30. 1. 2023)
(मम्मी की दूसरी पुण्यतिथि पर)
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सोमवार, 23 जनवरी 2023

756. पुल

पुल 

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पुल तो ध्वस्त हो गया   
जिससे दोनों पाटों को जोड़कर   
पार कर जाते थे अथाह खाई   
हाँ, एक पतली सी डोरी छोड़ दी थी   
शायद किसी मोड़ पर वापसी हो   
तो लौटना मुमकिन हो सके   
यह याद रखते हुए   
कि यह अन्तिम   
अस्त्र, शस्त्र और मन्त्र है   
जीवन के प्रवाह की   
यह डोरी अगर टूटी या छूटी   
फिर उम्र और वक़्त की सीमा कुछ भी हो   
जीवन एक पार ही रहेगा   
तमाम अंतर्द्वंद्वों को समझते जानते हुए   
अब कोई नया पुल न बनेगा   
न मरम्मत की जाएगी   
न कोई सूत जोड़ी या छोड़ी जाएगी।

- जेन्नी शबनम (23. 1. 23)
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मंगलवार, 3 जनवरी 2023

755. नार्सिसिस्ट

नार्सिसिस्ट 

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उसका प्यार उसकी नफ़रत   
उसका आरोप उसका प्रत्यारोप   
उसकी प्रताड़ना, शिकायत   
उसकी दया, क्षमा   
उसका परिहास, उपहास   
उसके बन्धन, क्रन्दन   
उसका सत्य, झूठ 
कुछ समझ नहीं आता।  
यह कैसा चरित्र है   
जो दूसरों के आँसू में हँसी तलाशता है   
दूसरों को नीचा गिराकर दम्भ से हुँकारता है।    
वह मानता है-   
वह सर्वश्रेष्ठ है 
ईश्वर की संतान है   
चाँद-तारों धरती-आकाश   
पूरे विश्व की पहचान है   
उससे बेहतर कोई नहीं,   
अगर उसे कोई बेहतर लग गया   
तो उसके सम्मान पर वह इतनी चोट करेगा   
कि दूसरा आत्मसमर्पण कर दे   
या आत्मविश्वास खो दे   
या हीनता का शिकार होकर    
उसकी तरह बीमार हो जाए   
या पर-कटे पंछी की तरह छटपटाए   
और इन सबसे उसकी बाँछें खिल जाती हैं   
उसे मिलती है बेइंतहा ख़ुशी।   
यह आत्ममुग्धता क्या है?   
क्या इसका कोई ईलाज है?   
शायद नहीं!   
नार्सिसिस्ट पर दया की जाए   
या जान बचाकर पलायन करना उचित है?   
दिमाग शून्य हो जाता है   
यह कैसा चक्रव्यूह है   
जिससे बाहर आने की राहें तो हैं   
मगर इतनी कँटीली   
कि तन-मन दोनों छलनी होंगे   
न जीवन जीते बनेगा   
न मरने की हिम्मत बचेगी   
या अल्लाह!   
क्यों बनाता है तू ऐसा मानव?   
ये नार्सिसिस्ट   
न किसी से प्रेम कर सकते   
न किसी की हत्या   
जीवन भर दूसरों को तड़पाकर   
आनन्दित होते हैं।   
मुक्ति का कोई उपाय नहीं। 

- जेन्नी शबनम 
(1. 1. 2023)
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बुधवार, 16 नवंबर 2022

754. मेरा पर्स / मेरी ज़िन्दगी

मेरा पर्स / मेरी ज़िन्दगी  

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मेरा पर्स मानो भानुमति का पिटारा है
उसमें मेरी ज़रूरत की सभी चीज़ें हैं 
अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में
सब कुछ बेधड़क निकल आता है
मेरी दवाओं से लेकर
बिस्किट-चॉकलेट-पानी
काग़ज़-कलम-रूमाल
और जो काग़ज़ पर आज तक उतरे नहीं ऐसी कई ख़याल
कुछ मास्क सैनिटाइजर मेट्रो कार्ड
अचानक ख़रीददारी के लिए थैले
हाँ, मुझे क्रेडिट डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करना नहीं आता
तो कुछ कैश रुपये जिससे मेरा काम चल जाए
मेरा पहचान पत्र और देह दान कार्ड भी है
आकस्मिक दुर्घटना के बाद अस्पताल पहुँच सकूँ
देह दान का कार्ड जिसपर दो मोबाइल नं लिखे हुए हैं
ताकि दान प्रक्रिया की अनुमति देने में देर न हो
सोचती हूँ कि मेरी ज़रूरतें कितनी कम हैं
कफ़न और साँसें हैं जो मेरे पर्स में नहीं है
बाक़ी जीवन से मृत्यु तक के सफ़र का सामान है
पर्स तो बदलती हूँ पर सामान नहीं
इस सामान के बिना जीना मुश्किल है
और मरना भी आसान नहीं
जाने कब ज़रूरत पड़ जाए
मेरे पर्स में मेरी ज़िन्दगी पड़ी है
और मृत्यु के बाद की मेरी इच्छा भी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2022)
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शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

753. ज़िन्दगी नहीं है

ज़िन्दगी नहीं है 

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बहुत कुछ था जो अब नहीं है   
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।   
कश्मकश में उलझकर क्या कहें   
जो कुछ भी था अब नहीं है।   
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या   
कहने को बचा अब कुछ नहीं है।   
फ़िसलते नातों का ये दौर   
ख़तम होता अब क्यों नहीं है।   
रह-रहकर पुकारता है मन   
सब है पर अपना कोई नहीं है।   
'शब' की बातें कच्ची-पक्की   
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है। 

- जेन्नी शबनम (11. 11. 22)
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शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

752. सपने हों पूरे / गर तू आ जाता (6 माहिया)

सपने हों पूरे

***


1.
मन में जो आस खिली 
जीवन में मेरे 
अब जाकर प्रीत मिली। 
 
2.
थी अभिलाषा ये मन में 
सपने हों पूरे 
सारे इस जीवन में।  

- जेन्नी शबनम (10. 7. 2013)
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गर तू आ जाता 
*** 

1.
पानी बहता जैसे 
बिन जाने समझे 
जीवन गुज़रा वैसे। 

2.
फूलों-सी खिल जाती 
गर तू आ जाता 
तुझमें मैं मिल जाती। 

3.
अजब यह कहानी है 
बैरी दुनिया से 
पहचान पुरानी है। 

4.
सुख का सूरज चमका 
आशाएँ जागी 
मन का दर्पण दमका। 

- जेन्नी शबनम (30. 1. 2014)
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रविवार, 2 अक्तूबर 2022

751. चौथा बन्दर

चौथा बन्दर

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बापू के तीनों बन्दर   
सालों-साल मुझमें जीते रहे   
मेरे आँसू तो नहीं माँगे   
मेरा लहू पीते रहे   
फिर भी मैंने उनका अनुकरण-अनुसरण किया,   
अब वे फुदक-फुदककर   
बाहर आने को व्याकुल रहते हैं   
जब से मुझे बुरा दिखने लगा बुरा सुनाई देने लगा   
और फिर मैंने बुरा बोलना सीख लिया   
पर मैंने उन्हें जकड़ रखा है ज़ेहन में   
आज़ादी न मिलेगी उन्हें।   
ये तीनों घमासान मचाए हुए हैं   
परन्तु अब वह ज़माना न रहा   
जब चुपचाप सब सहा जाए   
बुरा देखा जाए, सुना जाए, न कहा जाए।   
अब तो मैंने एक और बन्दर को पाल लिया है   
जो इन तीनों को दबोचकर रखता है   
और जैसे को तैसा का आदेश देता है,   
फिर कहीं से बापू की आवाज़ गूँजती है-   
ऐसे तो कभी समाधान न होगा   
पर बात जब हद से बाहर हो जाए   
तो चौथे बन्दर को बाहर लाओ।   
इनदिनों चौथे बन्दर को बाहर आने के लिए   
आह्वान कर रही हूँ   
अब मैं कम डर रही हूँ।   

- जेन्नी शबनम (2. 10. 2022) 
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शनिवार, 24 सितंबर 2022

750. मृत्यु सत्य है (मृत्यु पर 50 हाइकु)

मृत्यु सत्य है
(मृत्यु पर 50 हाइकु)

******* 

1. 
मृत्यु सत्य है   
बेख़बर नहीं हैं     
दिल रोता है।   

2. 
शाश्वत आत्मा   
अपनों का बिछोह   
रोती है आत्मा।   

3. 
काम न आता   
काल जब आ जाता   
अकूत धन।   

4. 
यम कठोर   
आँसू से न पिघला,   
माँ-बाबा मृत।   

5. 
समय पूर्ण,   
मनौती है निष्फल,   
यम का धर्म।   

6. 
यम न माना   
करबद्ध निहोरा   
जीवन छीना।   

7. 
हारा मानव,   
छीन ले गया प्राण   
यम दानव।

8.
आ धमकता
न चिट्ठी न सन्देश 
यम अतिथि।   

9. 
मौत का खेला   
कोरोना फिर खेला   
तीसरा साल।   

10. 
मन बेकल   
जाने कौन बिछड़े   
कोरोना काल।   

11. 
यमदूत-सा,   
कोरोना प्राण लेता   
बहुत डराता।   

12. 
कोहराम है   
कोरोना के सामने   
सब लाचार।   

13. 
थमता नहीं   
कोरोना का क़हर   
श्मसान रोता।   

14. 
मालिक प्राण   
जब चाहे छीन ले   
देह ग़ुलाम।   

15. 
मृत्यु का पल   
अब समझ आया   
जीवन माया।   

16. 
लेकर जाती   
वैतरणी के पार,   
मृत्यु है यार।   

17. 
पितृलोक है   
शायद उस पार,   
सुख-संसार।   

18. 
दुःख अपार   
मिलता आजीवन,   
निर्वाण तक।   

19. 
धम्म से आई   
लेकर माँ का प्राण   
मौत है भागी।   

20. 
बिना जिरह   
मौत की अदालत   
मौत की सज़ा।   

21. 
वक़्त के पास   
अवसान के वक़्त   
नहीं है वक़्त।   

22. 
मौत बेदर्द   
ज़रा देर न रुकी,   
अम्मा निष्प्राण।   

23. 
आस का दीया   
सदा के लिए बुझा,   
मौत की आँधी।   

24. 
निर्दय मौत   
छीन ले गई प्राण   
थे अनजान।   

25. 
मृत्यु का खेल,   
ज़रा न संवेदना   
है विडम्बना।   

26. 
ज़रा न दर्द   
मौत बड़ी बेदर्द   
हँसी निर्लज।   

27. 
ताक़त दिखा   
मौत मुस्कराकर   
प्राण हरती।   

28. 
माँ को ले गई   
डरा धमकाकर   
मौत निष्ठुर।   

29. 
पितृधाम में   
मृत्यु है पहुँचाती,   
मृत्यु-रथ से।   

30. 
मौत ने छीने   
हमारे अपनों को,   
हृदय ज़ख़्मी।   

31. 
खींच ले चलो,   
यम का फरमान   
जिसको चाहे।   

32. 
रूला-रूलाके   
तमाशा है दिखाती   
मौत नर्तकी।   

33. 
बच्चे चीखते   
हृदय विदारक,   
मौत हँसती।   

34. 
लिप्सा अनन्त   
क्षणभंगुर प्राण   
लोभी मानव।   

35. 
आ धमकती   
मग़रूर है मौत   
साँसें छीनती।   

36. 
निगल गई   
मौत फिर भी भूखी   
हज़ारों प्राण।   

37. 
सब भकोसा   
आदमी और पैसा   
भूखा कोरोना।   

38. 
मृत्यु की जीत   
जीवन-मृत्यु खेल,   
शाश्वत सत्य।   

39. 
मौत का यान   
जबरन उठाकर   
फुर्र से पार।   

40. 
सहमी फिज़ा   
ठिठकी देख रही,   
मौत का जश्न।   

41. 
स्थायी बसेरा,   
किराए का संसार   
मृत्यु का घर।   

42. 
हज़ारों मौत   
असामयिक मौत,   
ख़ून के आँसू।   

43. 
देख संसार   
मौत बना व्यापार   
बेबस काल।   

44. 
होते विलीन   
अपने या पराये,   
मौत से हारे।   

45. 
सन्देश, डरी   
दिल है दहलाती   
मौत की पाती।   

46. 
मौत-कटार   
दिल जिसपे आए   
करती वार।   

47. 
निष्प्राण प्राणी   
मौत से कैसे लड़े   
साँसों के बिन।   

48. 
क्रूर नियति   
मज़ाक है उड़ाती   
मौत की साथी।   

49. 
ख़ून ही ख़ून   
मौत है नरभक्षी,   
किसकी बारी।   

50. 
असह्य व्यथा   
सबने है समझा,   
मौत निर्बुद्धी।   

- जेन्नी शबनम (24. 9. 2022)

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बुधवार, 14 सितंबर 2022

749. हमारी मातृभाषा (6 हाइकु)

हमारी मातृभाषा 

(6 हाइकु)
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1. 
बिलखती है,   
बेचारी मातृभाषा   
पा अपमान।  

2. 
हमारी भाषा   
बनी जो राजभाषा   
है मातृभाषा।  

3. 
अपनी भाषा   
नौनिहाल बिसरे,   
हिन्दी पुकारे।  

4. 
रुलाते सभी   
फिर भी है हँसती   
हमारी हिन्दी।  

5. 
अपनों द्वारा   
होती अपमानित   
हिन्दी शापित।  

6. 
हिन्दी कहती-   
तितली-सी उड़ूँगी   
नहीं हारूँगी।  

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2022)
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रविवार, 11 सितंबर 2022

748. हे गंगा माई (ताँका) (बज्जिका भाषा)

हे गंगा माई 
(ताँका)
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1. 
हे गंगा माई   
केहू नहीं हमर   
कौना से कहू   
सुख-दुःख अपन   
कैसे कटे सफर।   

2. 
हे गंगा माई   
मन बड़ा बिकल   
देख के छल   
छुपा ल दुनिया से   
कोख में अपन।   

3. 
हे गंगा माई   
हमर पुरखा के   
तू समा लेलू   
समा ल हमरो के   
तोरे जौरे बहब।   

4. 
तू ही ले गेलू   
हमर बाबू-माई   
भेंट करा द   
निहोरा करई छी   
दया कर हे माई।   

5. 
पाप धोअ लू   
पुन सबके दे लू   
देख दुनिया   
गन्दा कर देलई   
कइसन हो गेलू।   

-  जेन्नी शबनम (24. 8. 2022)
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सोमवार, 15 अगस्त 2022

747. आज़ादी का अमृत महोत्सव

आज़ादी का अमृत महोत्सव 

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नहीं चलना ऐसे   
जब किसी की परछाईं पीछा करे   
नहीं देखना उसे   
जो तुम्हारी नज़रों की तलाश को ख़ुद तक रोके   
नहीं सुनना उसे   
जो तुम्हारी न सुने सिर्फ़ अपनी कहे   
नहीं निभाना साथ उसके   
जिसका फ़रेब तुम्हें सताता रहे   
नहीं करना प्रेम उससे   
जो बदले में तुम्हारी आज़ादी छीने   
नहीं उलझना उससे जो साँसों की पहरेदारी करे   
आज़ादी की बात कर साँसें लेना मुहाल करे।   
ज़िन्दगी एक बार ही मिलती है   
आज़ादी बड़े-बड़े संघर्षों से मिलती है   
ठोकर मारकर शातिरों को   
जीवन का जश्न जीभरकर मनाओ   
अपनी धरती, अपना आसमाँ, अपना जहाँ   
बेबाक बनकर आज़ादी का लुत्फ़ उठाओ।   
आज़ादी की साँसें दिल से दिल तक हो   
आज़ादी की बातें मन से मन तक हो   
जीकर देखो कि कितनी मिली आज़ादी   
किससे कब-कब मिली आज़ादी   
लेनी नहीं है भीख में आज़ादी   
हक़ है, जबरन छीननी है आज़ादी।   
आज़ादी का यह अमृत महोत्सव   
सबके लिए है तो तुम्हारे लिए भी है। 

- जेन्नी शबनम (15. 8. 22) 
(स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर) 
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गुरुवार, 4 अगस्त 2022

746. चिन्तन (12 क्षणिका)

चिन्तन 
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1. चिन्तन 

समय, सच और स्वप्न
आपस में सब गड्डमड्ड हो रहे हैं
भूल रही हूँ, समय के किस पहर में हूँ
कब यथार्थ, कब स्वप्न में हूँ
यह मतिभ्रम है या चिन्तन की अवस्था
या दूसरे सफ़र की तैयारी 
यह समय पर जीत है 
या समय से मैं हारी। 


2. दोबारा  

दोबारा क्यों?
इस जन्म की पीर
क्या चौरासी लाख तक साथ रहेगी?
नहीं, अब दोबारा कुछ नहीं चाहिए 
न सुख, न दु:ख, न जन्म
स्वर्ग क्या नरक भी मंज़ूर है
पर धरती का सहारा नहीं चाहिए
जन्म दोबारा नहीं चाहिए। 


3. कोशिशों की मियाद
 
ज़िन्दगी की मियाद है  
तय वक़्त तक जीने की   
सम्पूर्णता की मियाद है   
ख़ास वक़्त के बाद पूर्ण होने की   
वैसे ही कोशिशों की मियाद भी लाज़िमी है   
कि किस हद के बाद छोड़ दी जाए वक़्त पर   
और बस अपनी ज़िन्दगी जी जाए।    
वर्ना तमाम उम्र 
महज़ कोशिशों के नाम।


4. कमाल 

दर्द से दिल मेरा दरका
काग़ज़ पर हर दर्द उतरा
वे समझे, है व्यथा ज़माने की
और लिखा मैंने कोई गीत नया,
कह पड़े वे- वाह! कमाल लिखा!


5. सहारा 

चुप-चुप चुप-चुप सबने सुना
रुनझुन-रुनझुन जब दर्द गूँजा
बस एक तू ही असंवेदी 
करता सब अनसुना
क्या करूँ तुझसे कुछ माँगकर
मेरे हाथ की लकीरों में तूने ही तो दर्द है उतारा,
मुझे तो उसका भी सहारा नहीं
लोग कहते क़िस्मत का सहारा है।  


6. नाराज़ 

ताउम्र गुहार लगाती रही
पर समय नाराज़ ही रहा 
और अंतत: चला गया
साथ मेरी उम्र ले गया
अब मेरे पास न समय बचा
न उसके सुधरने की आस, न ज़िन्दगी। 


7. मुँहज़ोर तक़दीर 

हाथ की लकीरों को
ज़माना पढ़ता रहा हँसता रहा
कितना बीता, कितना बचा?
कितना ज़ख़्म और हाथेली में समाएगा?
यह मुँहज़ोर तक़दीर, न बताती है न सुनती है
हर पल मेरी हथेली में, एक नया दर्द मढ़ती है।  


8. महाप्रयाण 

अतियों से उलझते-उलझते   
सर्वत्र जीवन में संतुलन लाते-लाते 
थकी ही नहीं, ऊबकर हार चुकी हूँ, 
ख़ुद को बचाने के सारे प्रयास 
पूर्णतः विफल हो चुके हैं  
संतुलन डगमगा गया है,  
सोचती हूँ राह जब न हो तो 
गुमराह होना ही उचित है, 
बेहतर है ख़ुद को निष्प्राण कर लूँ 
शायद महाप्रयाण का यही सुलभ मार्ग है। 


9. फ़िल्म 

जीवन फ़िल्मों का ढेर है 
अच्छी-बुरी सुखान्त-दुखान्त सब है 
पुरानी फ़िल्म को बार-बार देखना से 
मन में टीस बढ़ाती है
काश! ऐसा न हुआ होता 
ज़िन्दगी सपाट ढर्रे से गुज़र जाती 
कोई न बिछुड़ता जीवन से 
जिनकी यादों में आँखें पुर-नम रहती हैं।  
फ़िल्में देखो पर जीवन का स्वागत यूँ करो  
मानो पुर-सुकून हो। 


10. साथ   

इतना हँसती हूँ, इतना नाचती हूँ
ज़िन्दगी समझ ही नहीं पाती कि क्या हुआ
बार-बार वह मुझे शिकस्त देना चाहती है
पर हर बार मेरी हँसी से मात खा जाती है
अब ज़िन्दगी हैरान है, परेशान है
मुझसे छीना-झपटी भी नहीं करती
कर जोड़े मेरे इशारे पर चलती है
मेरी ज़िन्दगी मेरे साथ जीती है।  


11. मौसम के देवता

ओ मौसम के देवता!
मेरी मुट्ठी में सिर्फ़ पतझड़!
कभी वसन्त भेजो कभी वर्षा  
कभी शरत भेजो कभी हेमन्त  
हमेशा पतझड़ ही क्यों?
एक ही मौसम से जी भर गया है
ओ मौसम के देवता! 
ऐसा क्यों लगता है
मैं अमर हो गई हूँ और मौसम मर गया है।


12. शिद्दत

पतझड़ के मौसम के बीतने की प्रतीक्षा व्यर्थ है
कभी-कभी एक ही मौसम मन में बस जाता है
उम्र और मन ख़र्च हो जाता है 
दिन-महीना-साल बदल जाता है
पर नहीं बदलता, तो यह मुआ पतझड़
जब नाउम्मीदी चारों तरफ़ पसरी हो 
वीरानगी रास्ता रोककर जम जाए वहीं पर 
तब एक ही तरक़ीब शेष बचती है
पतझड़ में मौसम के मनचाहे सारे रंग बसा लो
और जी लो पूरी शिद्दत से जो भी वक़्त बचा है।

- जेन्नी शबनम (12. 12. 21)
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गुरुवार, 28 जुलाई 2022

745. अब्र (6 क्षणिका)

अब्र 

(6 क्षणिका)

******* 

1. अब्र   

ज़माने के हलाहल पीकर   
जलती-पिघलती मेरी आँखों से   
अब्र की नज़रें आ मिली   
न कुछ कहा, न कुछ पूछा   
वह जमकर बरसा, मैं जमकर रोई   
सारे विष धुल गए, सारे पीर बह गए   
मेरी आँखें और अब्र   
एक दूजे की भाषा समझते हैं। 
-0-

2. बादल   

तुम बादल बन जाओ   
जब कहूँ तब बरस जाओ   
तुम बरसो मैं तुमसे लिपटकर भीगूँ   
सारे दर्द को आँसुओं में बहा दूँ   
नहीं चाहती किसी और के सामने रोऊँ,   
मैं मुस्कुराऊँगी, फिर तुम लौट जाना अपने आसमाँ में।
-0-

3. घटा   

चाहती हूँ तुम आओ, आज मन फिर बोझिल है   
घटा घनघोर छा गई, मेरे चाहने से वो आ गई   
घटा प्यार से बरस पड़ी, आकर मुझसे लिपट गई   
तन भीगा मन सूख गया, मन को बड़ा सुकून मिला   
बरसों बाद धड़कनो में शोर हुआ, मन मेरा भाव-विभोर हुआ।
-0-

4. घन   

हे घन! आँखों में अब मत ठहरो   
बात-बे-बात तुम बरस जाते हो   
माना घनघोर उदासी है   
पर मुख पर हँसी ही सुहाती है   
पहर-दिन देखकर, एक दिन बरस जाओ जीभर   
फिर जाकर सुस्ताओ आसमाँ पर।
-0- 

5. मेघ   

अच्छा हुआ तुम आ गए, पर ज़रा ठहरो   
किवाड़ बन्दकर छत पर आती हूँ   
कोई देख न ले मेरी करतूत   
मेघ! तुम बरसना घुमड़-घुमड़   
मैं कूदूँगी छपाक-छपाक,   
यूँ लगता है मानो ये पहला सावन है   
उम्र की साँझ से पहले, बचपन जीने का मन है।
-0-

6. बदली   

उदासी के पाँव में महावर है   
जिसकी निशानी दिख जाती है   
बदली को दिख गई और आकर लिपट गई   
उसे उदासी पसन्द जो नहीं है   
धुलकर अब खिल गई हूँ मैं,   
उदासी के पाँव के महावर फिर गाढ़े हो रहे हैं   
अब अगली बारिश का इन्तिज़ार है।
-0-

- जेन्नी शबनम (28. 7. 2021)
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सोमवार, 4 जुलाई 2022

744. भोर (40 हाइकु)

 भोर 

*******

1.
भोर होते ही
हड़बड़ाके जागी,
धूप आलसी।

2.
आँखें मींचता
भोरे-भोरे सूरज
जगाने आया।

3.
घूमता रहा
सूरज निशाचर
भोर में लौटा।

4.
हाल पूछता
खिड़की से झाँकता,
भोर में सूर्य।

5.
गप्प करने
सूरज उतावला
आता है भोरे।

6.
छटा बिखेरा
सतरंगी सूरज
नदी के संग।

7.
सुहानी भोर
दीपक-सा जलता
नन्हा सूरज।

8.
गंगा मइया
रोज़ भोरे मिलती
सूरज सखा।

9.
भोर की वेला
सूरज की किरणें
लाल जोड़े में।

10.
नदी से पूछी
किरणें लजाकर,
नहाने आऊँ?

11.
किरणें प्यारी
छप-छप नहाती
नदी है टब।

12.
चली किरणें
संसार को जगाने
हुआ बिहान।

13.
तन्हा सूरज
उम्मीद से ताकता
कोई तो बोले।

14.
मन का बच्चा
खेलने को आतुर,
सूरज गेंद।

15.
चिड़िया बोली
तुम सब भी जागो
मैं जग गई।

16.
सोने न देता
भोरे-भोरे जगाता
क्रूर सूरज।

17.
अनिद्रा रोगी 
भोरे-भोरे जागते
सूरज बाबा।

18.
माँ-सी किरणें
दुलार से उठाती
रोज़ सबेरे।

19.
सूरज देव
अँगने में उतरे
फूल खिलाने।

20.
साथ बैठो न,
सूर्य का मनुहार
भोर है भई।

21.
पानी माँगने
गंगा के पास दौड़ा
सूरज प्यासा।

22.
सूरज भाई
बेखटके जगाए
बिना शर्माए।

23.
जल्द भोर हो
सूर्य का इंतिज़ार,
सूरजमुखी। 

24.
साफ़ सुथरा
नदी में नहाकर
सूर्य चमका।

25.
भोर में आता
दिनभर बौराता,
आवारा सूर्य।

26.
ठण्ड की भोर
आराम फ़रमाता
सूर्य कठोर।

27.
गच्चा दे गया
बेईमान सूरज
जाड़े की भोर।

28.
भोरे उठाता
करता मनमानी,
हठी सूरज।

29.
भोर की लाली
गंगा को है रँगती,
सुन्दर चित्र।

30.
नरम धूप
मनुहार करती -
बैठो न साथ।

31.
भोर की रश्मि
ख़ूब प्यार से बोली-
चाय पिलाओ।

32.
सूर्य थकता
रोज़ भोरे उगता
लेता न नागा।

33.
सूर्य भेजता
उठने का संदेश
रश्मि है दूत।

34.
भोर में सूर्य
गंगा-स्नान करता
पुण्य कमाता।

35.
हुआ बिहान
दलान पर सूर्य
तप करता।

36.
सूर्य न आया,
मेघ से डरकर
कहीं है छुपा।

37.
किसने बोला-
जागो, भोर हो गया,
चिड़िया होगी।

38.
धूप के बूटे
खिड़की से आ गिरे,
खिला बिछौना।

39.
भोरे-भोरे ही
चकल्लस को गया
आवारा सूर्य।

40.
भोर ने कहा-
सोने दो देर तक,
इतवार है।

- जेन्नी शबनम (30. 6. 2022)
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शनिवार, 18 जून 2022

743. साढ़े-सात सदी

साढ़े-सात सदी 


******* 

बाबा जी ने चिन्तित होकर कहा   
शनि की दूसरी साढ़ेसाती चल रही है   
फलाँ ग्रह, इस घर से उस घर को देख रहा है   
फलाँ घर में राहु-केतु बैठा हुआ है   
फलाँ की महादशा, फलाँ की अन्तर्दशा चल रही है   
कोई भी विपत्ति कभी भी आ सकती है   
पर तुम चिन्ता न करो, हम सब ठीक कर देंगे   
कुछ पूजा पाठ करो, थोड़ा दान-दक्षिणा…।   
ओह बाबाजी! आप ठीक-ठीक नहीं देख रहे हैं   
मेरी साढ़ेसाती नहीं, साढ़े-सात सदी गुज़र रही है   
शनि महाराज को हम पसन्द हैं न   
सबके जीवन में साढ़े-सात, साढ़े-सात करके   
तीन बार ही रहते हैं   
पर मेरे साथ साढ़े-सात सदी से रह रहे हैं   
राहु-केतु पूरी दुनिया को छोड़   
सदियों से मेरे घर में ताका-झाँकी कर रहे हैं   
बाबाजी! ये लीजिए, मेरे लिए कुछ न कीजिए   
जाइए आज आप भी जश्न मनाइए।   
पूजा-पाठ दान-दक्षिणा...   
साढ़े-छ: सदी तक तो सब किये   
फिर भी यह जीवन...   
अब इस अन्तिम सदी में सब छोड़ दिये हैं   
दूसरी ढइया हो या तीसरी   
अन्तिम साढ़ेसाती हो या अन्तिम सदी   
अब राहु-केतु हों या शनि महाराज   
देखते रहें तिरछी नज़रों से या वक्री नज़रों से   
हमको परवाह नहीं, देखें या न देखें   
देखना हो तो देखें या जाएँ...   
साढ़े-छ: तो बीत गया यूँ ही   
साढ़े-सात सदी अब बीतने को है।   

- जेन्नी शबनम (18. 6. 2022) 
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गुरुवार, 5 मई 2022

742. मन (मन पर 20 हाइकु)

मन  

(मन पर 20 हाइकु) 


1. 
जीवन-मृत्यु   
निरन्तर का खेल   
मन हो, न हो।   

2. 
डटके खड़ा   
गुलमोहर मन   
कोई मौसम।   

3. 
काटता मन   
समय है कुल्हाड़ी   
देता है दुःख।   

4. 
काश! रहता   
वन-सा हरा-भरा   
मन का बाग़।   

5. 
मन हाँकता   
धीमी - मध्यम - तेज़   
साँसों की गाड़ी।   

6. 
मन का रथ   
अविराम चलता   
कँटीला पथ।   

7. 
मन अभागा   
समय है गँवाया   
तब समझा।   

8. 
मन क्या करे?   
पछतावा बहुत   
जीवन ख़त्म।   

9. 
जटिल बड़ा   
साँसों का तानाबाना   
मन है हारा।   

10. 
मन का रोगी   
भेद न समझता   
रोता-रूलाता।   

11. 
हँसे या रोए   
नियति की नज़र   
मन न बचे।   

12. 
पास या फेल   
ज़िन्दगी इम्तिहान   
मन का खेल।   

13. 
मन की कथा   
समय पे बाँचती   
रिश्ते जाँचती।   

14. 
न खोलो मन,   
पराए पाते सुख   
सुन के दुःख।   

15. 
कठोर वाणी   
कृपाण-सी चुभती,   
मन घायल।   

16. 
लौ उम्मीद की   
मन जलता दीया   
जीवन-दीप्त।   

17. 
भौचक मन   
हतप्रभ देखता   
दृश्य के पार।   

18. 
मन का पंछी   
लालायित देखता   
उड़ता पंछी।   

19. 
मन में पीर   
चेहरे पे मुस्कान   
जीवन बीता।   

20. 
अकेला मन   
ख़ुद से बतियाता   
खोलता मन।   

- जेन्नी शबनम (5. 5. 2022)
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