शबनम...
*******
रात चाँदनी में पिघलकर
यूँ मिटी शबनम
सहर को ये ख़बर नहीं थी
कब मिटी शबनम !
दर्द की मिट्टी का घर
फूलों से सँवरा
दर्द को ढ़कती रही पर
दर्द बनी शबनम !
अपनों के शहर में
है कोई अपना नहीं
ठुकराया आसमां और
उफ़्फ़ कही शबनम !
चाँद तारों के नगर में
हुई जो तकरार
आसमान से टूटकर
तब ही गिरी शबनम !
शब व सहर की दौड़ से
थकी तो बहुत मगर
वक्त के साथ चली
अब भी है वही शबनम !
- जेन्नी शबनम (31. 8. 2016)
__________________________