गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

289. मेरी हथेली

मेरी हथेली

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अपनी एक हथेली तुम्हें सौंप आई
जब तुमसे मिली थी 
जिसकी लकीरों में है मेरी तक़दीर 
और मेरी तक़दीर सँवारने की तजवीज़।   
एक हथेली अपने पास रख ली 
जो वक़्त के हाथों ज़ख़्मी है 
जिसकी लकीरों में है मेरा अतीत 
और मेरे भविष्य की उलझी तस्वीर।   
विस्मृत नहीं करना चाहती कुछ भी 
जो मैंने पाया या खोया 
या फिर मेरी वो हथेली 
जो तुमने किसी दिन गुम कर दी
क्योंकि सहेजने की आदत तुम्हें नहीं। 

- जेन्नी शबनम (4. 10. 2011)
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