मंगलवार, 13 मई 2014

456. पैसा (15 हाइकु) पुस्तक 54-56

पैसा 

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1.
पैसे ने छीने
रिश्ते नए पुराने
पैसा बेदिल।

2.
पैसा गरजा
ग़ैर बने अपने
रिश्ता बरसा।

3.
पैसे की वर्षा
भावनाएँ घोलता
रिश्ता मिटता।

4.
पैसा कन्हैया
मानव है गोपियाँ
खेल दिखाता।

5.
पैसे का भूखा
भरपेट है खाता,
मरता भूखा।

6.
काठ है रिश्ता 
खोखला कर देता
पैसा दीमक।

7.
ताली पीटता
सबको है नचाता
पैसा घमंडी।

8.
पैसा अभागा
कोई नहीं अपना
नाचता रहा।

9.
पैसा है चंदा
रंग बदले काला
फिर भी भाता।

10.
मन की शांति
लूटकर ले गया
पैसा लुटेरा।

11.
मिला जो पड़ा
चींटियों ने झपटा
पैसा शहद।

12.
गुत्थम-गुत्था
इंसान और पैसा
विजयी पैसा।

13.
बने नशेड़ी
जिसने चखा नशा,
पैसा है नशा।

14.
पैसा ज़हर
सब चाहता खाना
हसीं असर

15.
नाच नचावे 
छन-छन छनके 
हाथ न पैर। (पैसा)
  
- जेन्नी शबनम (29. 4. 2014)
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