दड़बा
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ऐ लड़कियों!
तुम सब जाओ अपने-अपने दड़बों में
अपने-अपने परों को सँभालो
एक दूसरे को अपने-अपने चोंचों से लहूलुहान करो।
कटना तो तुम सबको है, एक न एक दिन
अपनों द्वारा या ग़ैरों द्वारा,
सीख लो लड़ना, ख़ुद को बचाना, दूसरों को मात देना
तुम सीखो छल-प्रपंच और प्रहार-प्रतिघात
तुम सीखो द्वंद्ववाद और द्वंद्वयुद्ध।
दड़बे के बाहर की दुनिया, क़ातिलों से भरी है
जिनके पास, शब्द के भाले हैं, बोली की कटारें हैं
जिनके देह और जिह्वा को, तुम्हारे माँस और लहू की प्यास है
पलक झपकते ही, झपट ली जाओगी
चीख भी न पाओगी।
दड़बे के भीतर, कितना भी लिख लो तुम
बहादूरी की गाथाएँ, हौसलों की कथाएँ
पर बाहर की दुनिया, जहाँ पग-पग पर भेड़िया है
मानव रूप धरकर, तुम्हारा इंतजार कर रहा है
भेड़िए के सामने मेमना नहीं, खुद भेड़िया बनना है
टक्कर सामने से देना है, बराबरी पर देना है।
ऐ लड़कियों!
जीवन की रीत, जीवन का संगीत, जीवन का मंत्र
सब सीख लो तुम,
न जाने कब किस घड़ी
समय तुमसे क्या माँगे।
- जेन्नी शबनम (24. 10. 2020)
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