कासे कहे...
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मद्धिम लौ
जुगनू ज्यों
वही सूरज
वही जीवन
सब रीता
पर बीता !
वही सूरज
वही जीवन
सब रीता
पर बीता !
जीवन यही
रीत यही
रीत यही
पीर पराई
भान नहीं
सब खोया
भान नहीं
सब खोया
मन रोया !
कठिन घड़ी
कैसे कटी
मन तड़पे
मन तड़पे
कासे कहे
नहीं अपना
सब पराया !
तनिक पूछो
क्यों चाहे
मूक पाखी
कोई साथी
एक बसेरा
कोई सहारा !
क्यों चाहे
मूक पाखी
कोई साथी
एक बसेरा
कोई सहारा !
- जेन्नी शबनम (जून 21, 2012)
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