गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

478. सपनों के झोले

सपनों के झोले  

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मुझे समेटते-समेटते    
एक दिन तुम बिखर जाओगे  
ढह जाएगी तुम्हारी दुनिया  
शून्यता का आकाश 
कर लेगा अपनी गिरफ़्त में तुम्हें  
चाहकर भी न जी सकोगे न मर सकोगे तुम, 
जानते हो
जैसे रेत का घरौंदा भरभराकर गिरता है  
एक झटके में  
कभी वैसे ही चकनाचूर हुआ सब  
अरमान भी और मेरा आसमान भी  
उफ़ के शब्द गले में ही अटके रह गए  
कराह की आवाज़ को आसमान ने गटक लिया  
और मैं ठंडी ओस-सी सब तरफ़ बिखर गई,  
जानती हूँ 
मेरे दर्द से कराहती तुम्हारी आँखें  
रब से क्या-क्या गुज़ारिश करती हैं    
सूनी ख़ामोश दीवारों पे 
तुम्हें कैसे मेरी तस्वीर नज़र आती है  
जाने कहाँ से रच लेते हो ऐसा संसार  
जहाँ मेरे अस्तित्व का एक कतरा भी नहीं  
मगर तुम्हारे लिए पूरी की पूरी मैं वहाँ होती हूँ,  
तुम चाहते हो  
बिंदास और बेबाक जीऊँ  
मर-मरकर नहीं जीकर जिन्दगी जीऊँ  
सारे इंतज़ाम तुम सँभालोगे, मैं बस ख़ुद को सँभालूँ  
शब्दों की लय से जीवन गीत गुनगुनाऊँ,  
बड़े भोले हो    
सपनों के झोले में जीवन समाते हो   
जान लो  
अरमान आसमान नहीं देते
बस भ्रम देते हैं।    

- जेन्नी शबनम (11. 12. 2014)  
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