सिंहनाद करो
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व्यर्थ लगता है
शब्दों में समेटकर
हिम्मत में लपेटकर
अपनी संवेदनाओं को
अभिव्यक्त करना,
हम जिसे अपनी आज़ादी कहते हैं
हम जिसे अपना अधिकार मानते हैं
सुकून से दरवाज़े के भीतर
देश की दुर्व्यवस्था पर
देश और सरकार को कोसते हैं
अपनी ख़ुशनसीबी पर
अभिमान करते हैं कि
हम सकुशल हैं,
यह भ्रम जाने किस वक़्त टूटे
असंवेदनशीलता का क़हर
जाने कब धड़धड़ाता हुआ आए
हमारे शरीर और आत्मा को छिन्न-भिन्न कर जाए,
ज्ञानी-महात्मा कहते हैं-
सब व्यर्थ है
जग मोह है माया है
क्षणभंगूर है,
फिर तो व्यर्थ है हमारी सोच
व्यर्थ है हमारी अभिलाषाएँ
जो हो रहा है होने दो
नदी के साथ बहते जाओ
आज़ादी हमारा अधिकार नहीं
बस जीते जाओ जीते जाओ।
यही वक़्त है
ख़ुद से अब साक्षात्कार करो
सारे क़हर आत्मसात करो
या फिर सिंहनाद करो।
- जेन्नी शबनम (15. 8. 2018)
(स्वतंत्रता दिवस)
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