शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

321. नन्हे हाथों में

नन्हे हाथों में

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नामुमकिन हो गया
उस सफ़र पर जाना
जहाँ जाने के लिए
बारहा कोशिश करती रही,
मर्ज़ी नहीं थी
न चाह
पर यहाँ रुकना भी बेमानी लगता रहा,
ठीक उसी वक़्त
जब काफ़िला गुज़रा
और मैंने कदम बढ़ा दिए
किसी ने मुझे रोक लिया,
पलटकर देखा
दो नन्हे हाथ
आँचल थामे हुए थे,
रिश्तों की दुहाई
जीवन पलट गया
मेरे साथ उजाले की किरण न थी
पर उम्मीद की किरण तो थी
उन नन्हे हाथों में
। 

- जेन्नी शबनम (नवम्बर 1995)
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