मंगलवार, 14 सितंबर 2010

173. अज्ञात शून्यता / agyaat shoonyata (पुस्तक - 109)

अज्ञात शून्यता

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एक शून्यता में प्रवेश कर गई हूँ
या कि मुझमें शून्यता प्रवाहित हो गई है,
थाह नहीं मिलता 
किधर खो गई हूँ
या जान-बुझकर खो जाने दी हूँ स्वयं को

कँपकँपाहट है और डर भी
बदन से छूट जाना चाहते, मेरे अंग सभी,
हाथ में नहीं आता कोई ओस-कण
थर्रा रहा काल, कदाचित महाप्रलय है!

मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर, संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे, यह क्या रहस्य है
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का 

- जेन्नी शबनम (14. 9. 2010)
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agyaat shoonyata

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ek shoonyata mein pravesh kar gai hun
ya ki mujhmein shoonyata pravaahit ho gai hai,
thaah nahin milta 
kidhar kho gai hun
ya jaan-bujhkar kho jaane dee hun svayam ko.

kanpkanpaahat hai aur dar bhi
badan se chhut jana chaahte, mere ang sabhi,
haath mein nahin aataa koi os-kan,
tharra raha kaal, kadaachit mahapralay hai!

mukti ki raah hai
ya fir koi bhayaanak gufa,
kyon kheench raha mujhe
jaane koun hai us paar?
shoonyata hai par, samvedanshunyata kyon nahin?
nahin samajh mujhe, yeh kya rahasya hai
mera ya meri is
agyaat shoonyata ka.

- Jenny Shabnam (14. 9. 2010)
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