शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

227. विध्वंस होने को आतुर

विध्वंस होने को आतुर

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चेतन अशांत है
अचेतन में कोहराम है
अवचेतन में धधक रहा
जैसे कोई ताप है

अकारण नहीं संताप
मिटना तो निश्चित है
नष्ट हो जाना ही
जैसे अंतिम परिणाम है

विक्षिप्तता की स्थिति
क्रूरता का चरमोत्कर्ष है
विध्वंस होने को आतुर
जैसे अब हर इंसान है

विभीषिका बढ़ती जा रही
स्वयं मिटे अब दूसरों की बारी है
चल रहा कोई महायुद्ध
जैसे सदियों से अविराम है

- जेन्नी शबनम (28 . 3 . 2011)
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