सपने...
*******
उम्मीद के सपने बार-बार आते हैं
न चाहें फिर भी आस जगाते हैं!
चाह वही अभिलाषा भी वही
सपने हर बार बिखर जाते हैं!
उल्लसित होता है मन हर सुबह
साँझ ढले टूटे सपने डराते हैं!
आओ देखें कुछ ऐसे सपने
जागती आँखों को जो सुहाते हैं!
'शब' कैसे रोके रोज़ आने से
सपने आँखों को बहुत भाते हैं!
- जेन्नी शबनम (8. 4. 2011)
_________________________________________
*******
उम्मीद के सपने बार-बार आते हैं
न चाहें फिर भी आस जगाते हैं!
चाह वही अभिलाषा भी वही
सपने हर बार बिखर जाते हैं!
उल्लसित होता है मन हर सुबह
साँझ ढले टूटे सपने डराते हैं!
आओ देखें कुछ ऐसे सपने
जागती आँखों को जो सुहाते हैं!
'शब' कैसे रोके रोज़ आने से
सपने आँखों को बहुत भाते हैं!
- जेन्नी शबनम (8. 4. 2011)
_________________________________________