मन छुहारा (7 ताँका)
6.
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1.
अपनी आत्मा
रोज़-रोज़ कूटती
औरत ढेंकी
पर आस सँजोती
अपनी पूर्णता की।
2.
मन पिंजरा
मुक्ति की आस लगी
उड़ना चाहे
जाए तो कहाँ जाए
दुनिया तड़पाए।
3.
न देख पीछे
सब अपने छूटे
यही रिवाज
दूरी है कच्ची राह
मन के नाते पक्के।
4.
ज़िन्दगी सख्त
रोज़-रोज़ घिसती
मगर जीती
पथरीली राहों पे
निशान है छोड़ती।
5.
मन छुहारा
ज़ख़्म सह-सहके
बनता सख्त
रो-रोकर हँसना
जीवन का दस्तूर।
6.
मन जुड़ाता
गर अपना होता
वो परदेसी
उमर भले बीते
पर आस न टूटे।
7.
लहलहाते
खेत औ खलिहान
मन हर्षित
झूम-झूमके गाता
ख़ुशहाली के गीत।
-जेन्नी शबनम (10.9.2012)
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