रविवार, 2 अक्तूबर 2022

751. चौथा बन्दर

चौथा बन्दर

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बापू के तीनों बन्दर   
सालों-साल मुझमें जीते रहे   
मेरे आँसू तो नहीं माँगे   
मेरा लहू पीते रहे   
फिर भी मैंने उनका अनुकरण-अनुसरण किया,   
अब वे फुदक-फुदककर   
बाहर आने को व्याकुल रहते हैं   
जब से मुझे बुरा दिखने लगा बुरा सुनाई देने लगा   
और फिर मैंने बुरा बोलना सीख लिया   
पर मैंने उन्हें जकड़ रखा है ज़ेहन में   
आज़ादी न मिलेगी उन्हें।   
ये तीनों घमासान मचाए हुए हैं   
परन्तु अब वह ज़माना न रहा   
जब चुपचाप सब सहा जाए   
बुरा देखा जाए, सुना जाए, न कहा जाए।   
अब तो मैंने एक और बन्दर को पाल लिया है   
जो इन तीनों को दबोचकर रखता है   
और जैसे को तैसा का आदेश देता है,   
फिर कहीं से बापू की आवाज़ गूँजती है-   
ऐसे तो कभी समाधान न होगा   
पर बात जब हद से बाहर हो जाए   
तो चौथे बन्दर को बाहर लाओ।   
इनदिनों चौथे बन्दर को बाहर आने के लिए   
आह्वान कर रही हूँ   
अब मैं कम डर रही हूँ।   

- जेन्नी शबनम (2. 10. 2022) 
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