बुधवार, 30 सितंबर 2015

498. तुम्हारा इंतज़ार है (क्षणिका) (पुस्तक - 39)

तुम्हारा इंतज़ार है

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मेरा शहर अब मुझे आवाज़ नहीं देता  
नहीं पूछता मेरा हाल
नहीं जानना चाहता मेरी अनुपस्थिति की वजह
वक़्त के साथ शहर भी संवेदनहीन हो गया है
या फिर नई जमात से फ़ुर्सत नहीं   
कि पुराने साथी को याद करे
कभी तो कहे- "आ जाओ, तुम्हारा इंतज़ार है!'' 

- जेन्नी शबनम (30. 9. 2015)  
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