साथ-साथ
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तुम्हारा साथ
जैसे बंजर ज़मीन में फूल खिलना
जैसे रेगिस्तान में जल का स्रोत फूटना।
अकसर सोचती हूँ
तुममें कितनी ज़िन्दगी बसती है
बार-बार मुझे वापस खींच लाते हो ज़िन्दगी में
मेरे घर मेरे बच्चे
सब से विमुख होती जा रही थी
ख़ुद का जीना भूल रही थी।
उम्र की इस ढलान पर
जब सब साथ छोड़ जाते है
न तुमने हाथ छुड़ाया
न तुम ज़िन्दगी से गए
तुमने ही दूरी पार की
जब लगा कि
इस दूरी से मैं खंडहर बन जाऊँगी।
तुमने मेरे जज़्बातों को ज़मीन दी
और उड़ने का हौसला दिया
देखो मैं उड़ रही हूँ
जी रही हूँ!
तुम पास रहो या दूर रहो
साथ-साथ रहना
मुझमें ज़िन्दगी भरते रहना
मुझमें ज़िन्दगी भरते रहना।
- जेन्नी शबनम (24. 3. 2017)
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