मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

605. बसन्त (क्षणिका)

बसन्त   

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मेरा जीवन मेरा बंधु   
फिर भी निभ नहीं पाता बंधुत्व   
किसकी चाकरी करता नित दिन   
छुट गया मेरा निजत्व   
आस उल्लास दोनों बिछुड़े   
हाय! जीवन का ये कैसा बसंत।  

- जेन्नी शबनम (12. 2. 2019)
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