तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया...
*******
चाह थी मेरी
तीन पल में सिमट जाए दूरियाँ,
हसरत थी
तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया !
बाहें थाम
चल पड़ी साथ
जीने को खुशियाँ,
बंद सपने मचलने लगे
मानो खिल गई
सपनों की बगिया !
शिलाओं के झुरमुट में
अवशेषों की गवाही
और थाम ली तुमने बहियाँ,
जी उठी मैं फिर से सनम
जैसे तुम्हारी साँसों से
जीती हों वादियाँ !
उन अवशेषों में
छोड़ आए हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ,
जहाँ लिखी थी इश्क की इबारत
वहाँ हमने भी रची कहानियाँ !
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ,
बिन कहे ही तय हुआ
साथ चलेंगे हम
यूँ ही जीएँगे सदियाँ !
- जेन्नी शबनम (18. 12. 2010)
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चाह थी मेरी
तीन पल में सिमट जाए दूरियाँ,
हसरत थी
तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया !
बाहें थाम
चल पड़ी साथ
जीने को खुशियाँ,
बंद सपने मचलने लगे
मानो खिल गई
सपनों की बगिया !
शिलाओं के झुरमुट में
अवशेषों की गवाही
और थाम ली तुमने बहियाँ,
जी उठी मैं फिर से सनम
जैसे तुम्हारी साँसों से
जीती हों वादियाँ !
उन अवशेषों में
छोड़ आए हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ,
जहाँ लिखी थी इश्क की इबारत
वहाँ हमने भी रची कहानियाँ !
मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख्व़ाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ,
बिन कहे ही तय हुआ
साथ चलेंगे हम
यूँ ही जीएँगे सदियाँ !
- जेन्नी शबनम (18. 12. 2010)
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