सोमवार, 7 जनवरी 2013

377. क्रांति-बीज बन जाना (पुस्तक 59)

क्रान्ति-बीज बन जाना

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रक्त-बीज से पनपकर 
कोमल पंखुड़ियों-सी खिलकर 
सूरज को मुट्ठी में भर लेना  
तुम क्रांति-बीज बन जाना। 

नाज़ुक हथेलियों पर  
अंगारों की लपटें दहकाकर 
हिमालय को मन में भर लेना  
तुम क्रांति-बीज बन जाना।  

कोमल काँधे पर  
काँटों की फ़सलें उगाकर 
फूलों को दामन में भर लेना 
तुम क्रांति-बीज बन जाना।  

मन की सरहदों पर
संदेहों के बाड़ लगाकर
प्यार को सीने में भर लेना 
तुम क्रांति-बीज बन जाना। 
  
जीवन-पथ पर 
जब वार करे कोई अपना बनकर 
नश्तर बन पलटवार कर देना   
तुम क्रांति-बीज बन जाना। 

अनुकम्पा की बात पर 
भिड़ जाना इस अपमान पर  
बन अभिमानी भले जीवन हार देना
तुम क्रांति-बीज बन जाना।    

सिर्फ़ अपने दम पर 
सपनों को पंख लगाकर 
हर हार को जीत में बदल देना 
तुम क्रांति-बीज बन जाना। 

- जेन्नी शबनम (7. 1. 2013)
[पुत्री परान्तिका के 13 वें जन्मदिन पर]
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