अलविदा
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तपती रेत पर, पाँव के नहीं
जलते पाँव के ज़ख़्मों के निशान हैं,
मंज़िल दूर, बहुत दूर दिख रही है
पाँव थक चुके हैं, पाँव और मन जल चुके हैं
हौसला देने वाला कोई नहीं
साँसें सँभालने वाला कोई नहीं।
यह तय है, ज़िन्दगी वहाँ तक नहीं पहुँच पाएगी
जहाँ पाँव-पाँव चले थे, जहाँ सपनों को पंख लगे थे
जहाँ से ज़िन्दगी को सींचने, बहुत दूर निकल पड़े थे।
आह! अब और सहन नहीं होता
तलवे ही नहीं आँतें भी जल गई हैं
जल की एक बूँद भी नहीं
जिससे अंतिम क्षण में तालू तर हो सके,
उम्मीद की अंतिम तीली बुझने को है
आख़िरी साँस अब उखड़ने को है।
सलाम उन सबको
जिनके पाँव ने उनका साथ दिया,
मेरे उन सपनों, उन अपनों, उन यादों को अलविदा।
- जेन्नी शबनम (12. 5. 2020)
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