गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

785. सपने जो मेरे हैं (5 माहिया)

सपने जो मेरे हैं 

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1. 
सपने मेरे 
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सपने जो मेरे हैं 
ख़्वाबों में पलते 
होते ना पूरे हैं।  

2. 
अपने जब रूठे 
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सब अपने जब रूठे 
जितने सपने थे  
वे निकले सब झूठे।

3. 
माटी का पथ 
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माटी का पथ सँवरा
ख़्वाबों को भरकर
चाँदी का रथ गुज़रा।

4. 
मनमर्ज़ी 
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उसकी है ख़ुदगर्ज़ी 
नाता तोड़ गया
उसकी है मनमर्ज़ी।

5. 
बचपन में 
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फूल खिले उपवन में 
महके इठलाए
जीवन ज्यों बचपन में। 

- जेन्नी शबनम (29.12.22)
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मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

784. सूरज किसका चाँद किसका

सूरज किसका चाँद किसका 

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हम चाँद हैं तुम्हारे  
तुम सूरज हो हमारे 
हम भी तनहा, तुम भी तनहा 
संसार में हम दोनों तनहा 
पर साथ-साथ हम चलते हैं
अपना कर्त्तव्य निभाते हैं। 

सारे दिन जलकर
जब तुम सोने जाते हो
तुमसे लेकर उजाला
हम देते हैं जग को उजाला
बस एक रात होती है
हमारे मिलन की रात
वह है अमावस की रात
हाँ! यह भी बहुत है
हमारे अनन्त जीवन में
हर माह होती है हमारी रात। 

कभी-कभी मन सोचता है
मिली ऐसी ज़िन्दगी क्यों
पिया हमने अमृत क्यों
युगों-युगों से चलते हुए
हर रोज़ जलते हुए
क्या पाएँगे हम
कब तक यूँ जलेंगे हम
उफ़ ये क्या कर लिया हमने
अमरत्व का वरदान
अब लगता है अभिशाप। 

हम दोनों अपने पथ पर
बिना थके चलते दम भर
करते रहे कर्त्तव्य का पालन
नहीं किया कोई उल्लंघन
पर जग की रीत देखकर
मन चाहता छोड़ दें सब बन्धन। 
 
कोई कहता सूरज है उसका
कोई कहता चाँद है उसका
नहीं पूछता कोई हमसे
क्या इच्छा है हमारे मन में
युगों-युगों से हम साथ रहे
युगों-युगों तक यों ही रहेंगे
मन दुखता है सुनकर
जग हँसता जब हमें बाँटकर। 

अब चाहते आ जाए प्रलय
जग में नहीं रहा कोई लय
या मिल जाए विष कहीं
या उगल दें अमृत सभी
कर विषपान हम करें विश्राम
या अमरत्व का मिटे विधान। 

सूरज बिना मिट जाएगी दुनिया
अँधेरे में कब तक टिकेगी दुनिया
फिर बाँटते रहना जगवालों
सूरज था किसका
चाँद था किसका।

-जेन्नी शबनम (24.12.2024)
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गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

783. पैरहन (5 क्षणिका)

पैरहन
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1.
लकीर
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हथेली में सिर्फ़ सुख की लकीरें थीं
कब किसने दुःख की लकीरें उकेर दीं
जो ज़िन्दगी की लकीर से भी लम्बी हो गई
अब उम्मीद की वह पतली डोर भी टूट गई
जिसे सँजोए रखती थी तमाम झंझावतों में
और हथेली की लकीरों में तलाशती थी।

2.

इस पार या उस पार 

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शब्दों का कब तक दूँ हिसाब 

सवालों से घिरी मैं

अब नहीं चाहती जवाब

सिर पर लिए हुए सारे सवालों का धार 

चुपचाप गुम हो जाना चाहती हूँ

संसार के इस पार या उस पार।


  

3.

बेजान 
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रिश्ते बेजान हुए
कोई चाह अब शेष नहीं
टूटी-फूटी धड़कनें बेहाल हुईं
खण्ड-खण्ड में टूटा दिल, साँसें बेजार हुईं
सपनों के भँवर-जाल की सन्नाटों से बात हुईं
सब छूटा, सब बिखरा, जीने की ख़त्म राह हुई। 


4.
पैरहन
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मैंने ख़ुद को पहन रखा है सदियों से
ज़िन्दगी पैरहन है, जो अब बोझ लगती है
अब तो बे-आवाज़ ये पैरहन छूटे
मैं बे-लिबास हो जाऊँ
मैं आज़ाद हो जाऊँ।

5.
बदलाव
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मौसम का बदलना
नियत समय पर होता है
पर मन का मौसम
क्षणभर में बदलता है
यह बदलाव
कोई क्यों नहीं समझता है?

- जेन्नी शबनम (12.12.2024)
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