यकीन...
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हाँ मुझे यक़ीन है
एक दिन बंद दरवाज़ों से निकलेगी ज़िन्दगी
सुबह की किरणों का आवाभगत करेगी
रात की चाँदनी में नहाएगी
कोई धुन गुनगुनाएगी
सारे अल्फाजों को घर में बंद करके
सपनों की अनुभूतियों से लिपटी
मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी
बेपरवाह घुमेगी
ज़िन्दगी फिर से जीयेगी
हाँ मुझे यक़ीन है
ज़िन्दगी फिर से जीयेगी।
- जेन्नी शबनम (16. 11. 2017)
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