मैं स्त्री हूँ...
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मैं स्त्री हूँ
मुझे जिंदा रखना उतना ही सहज है जितना सहज
मुझे गर्भ में मार दिया जाना
मेरा विकल्प उतना ही सरल है जितना सरल
रंग उड़े वस्त्र को हटा कर नया परिधान खरीदना
मैं उतनी ही बेज़रूरी हूँ
जिसके बिना दुनिया अपूर्ण नहीं मानी जाती
जबकि इस सत्य से इंकार नहीं कि
पुरुष को जन्म मैं ही दूँगी
और हर पुरुष अपने लिए स्त्री नहीं
धन के साथ मेनका चाहता है,
मैं स्त्री हूँ
उन सभी के लिए जिनके रिश्ते के दायरे में नहीं आती
ताकि उनकी नज़रें
मेरे जिस्म को भीतर तक भेदती रहें
और मैं विवश होकर
और मैं विवश होकर
किसी एक के संरक्षण के लिए गिड़गिड़ाऊँ
और हर मुमकिन
ख़ुद को स्थापित करने के लिए
किश्त-किश्त में क़र्ज़ चुकाऊँ,
मैं स्त्री हूँ
जब चाहे भोगी जा सकती हूँ
मेरा शिकार
हर वो पुरुष करता है
जो मेरा सगा भी हो सकता है
और पराया भी
जिसे मेरी उम्र से कोई सरोकार नहीं
चाहे मैंने अभी-अभी जन्म लिया हो
या संसार से विदा होने की उम्र हो
क्योंकि पौरुष की परिभाषा बदल चुकी है,
मैं स्त्री हूँ
इस बात की शिनाख्त
हर उस बात से होती है
जिसमें स्त्री बस स्त्री होती है
जिसे जैसे चाहे इस्तेमाल में लाया जा सके
माँस का ऐसा लोथड़ा
माँस का ऐसा लोथड़ा
जिसे सूँघ कर बौखलाया भूखा शेर झपटता है
और भागने के सारे द्वार
स्वचालित यन्त्र द्वारा बंद कर दिए जाते हैं,
मैं स्त्री हूँ
पुरुष के अट्टहास के नीचे दबी
बिलख भी नहीं सकती
क्योंकि मेरी आँखों में तिरते आँसू
बेमानी माने जा सकते हैं
क्योंकि मेरे अस्तित्व के एवज़ में
एक पूरा घर मुझे मिल सकता है
या फिर
जिंदा रहने के लिए
कुछ रिश्ते और चंद सपने
चक्रवृद्धि ब्याज से शर्त
और एहसानों तले घुटती साँसें
क्योंकि
मैं स्त्री हूँ !
- जेन्नी शबनम (7. 7. 2016)
- जेन्नी शबनम (7. 7. 2016)
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