यह कविता है...
*******
मन की अनुभूति
ज़रा-ज़रा जमती
ज़रा-ज़रा उगती
(विश्व कविता दिवस पर)
ज़रा-ज़रा सिमटती
ज़रा-ज़रा बिखरती
मन की परछाईं बन
एक रूप है धरती
मन के व्याकरण से
मन की स्लेट पर
मन की खल्ली से
जोड़-जोड़ कर
कुछ हर्फ़ है गढ़ती,
नहीं मालूम
इस अभिव्यक्ति की भाषा
नहीं मालूम
इसकी परिभाषा;
सुना है
यह कविता है !
(विश्व कविता दिवस पर)
- जेन्नी शबनम (21. 3. 2013)
_____________________________