जादूगर...
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तुम्हारा सबसे ख़ास
मेरा प्रिय जादू
दिखाओ न !
जानती हूँ
तुम्हारी काया जीर्ण हो चुकी है
और अब मैं
ज़िन्दगी और जादू को समझने लगी हूँ
फिर भी...
मेरा मन है
एक बार और
तुम मेरे जादूगर बन जाओ
और मैं
तुम्हारे जादू में
अपना रोना भूल
एक आखिरी बार खिल जाऊँ ।
तुम्हें याद है
जब तुम
मेरे बालों से
टॉफ़ी निकाल कर
मेरी हथेली पर रख देते थे
मैं झट से
खा लेती थी
कहीं जादू की टॉफ़ी
गायब न हो जाए,
कभी तुम
मेरी जेब से
कुछ सिक्के निकाल देते थे
मैं हतप्रभ
झट मुट्ठी बंद कर लेती थी
कहीं जादू के सिक्के
गायब न हो जाए
और मैं ढ़ेर सारे गुब्बारे न खरीद पाऊँ,
मेरे मन के ख़िलाफ़
जब भी कोई बात हो
मैं रोने लगती
और तुम पुचकारते हुए
मेरी आँखें बंद कर जादू करते
जाने क्या-क्या बोलते
सुन कर हँसी आ ही जाती थी
और मैं खिसिया कर
तुम्हें मुक्के मारने लगती,
तुम कहते
बिल्ली झपट्टा मारी
बिल्ली झपट्टा मारी
मैं कहती
तुम चूहा हो
तुम कहते
तुम बिल्ली हो
एक घमासान
फिर तुम्हारा जादू
वही टॉफ़ी
वही सिक्के !
जानती हूँ
तुम्हारा जादू
सिर्फ मेरे लिए था
तुम सिर्फ मेरे जादूगर थे
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
यही तो था तुम्हारा जादू !
ओ जादूगर,
एक आखिरी जादू दिखाओ न !
- जेन्नी शबनम (18. 7. 2013)
(पिता की स्मृति में...)
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