बुधवार, 25 अप्रैल 2012

343. कोई एक चमत्कार

कोई एक चमत्कार 

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ज़िन्दगी, सपने और हक़ीक़त   
हर वक़्त, गुत्थम-गुत्था होते हैं   
साबित करने के लिए 
अपना-अपना वर्चस्व   
और हो जाते हैं लहुलूहान   
इन सबके बीच 
हर बार ज़िन्दगी को हारते देखा है 
सपनों को टूटते देखा है   
हक़ीक़त को रोते देखा है  
हक़ीक़त का अट्टहास ज़िन्दगी को दुत्कारता है   
सपनों की हार को चिढ़ाता है   
और फिर ख़ुद के ज़ख़्म से छटपटाता है।   
ज़िन्दगी है, कि बेसाख़्ता नहीं भागती 
धीरे-धीरे ख़ुद को मिटाती है   
सपनों को रौंदती है   
हक़ीक़त से इत्तेफ़ाक रखती है   
फिर भी उम्मीद रखती है कि शायद 
कहीं किसी रोज़   
कोई एक चमत्कार 
और वो सारे सपने पूरे हों   
जो हक़ीक़त बन जाए 
फिर ज़िन्दगी पाँव पर नहीं चले 
आसमान में उड़ जाए।   
न किसी पीर-पैगम्बर में ताक़त   
न किसी देवी-देवता में शक्ति   
न परमेश्वर के पुत्र में क़ुव्वत   
जो इनके जंग में   
मध्यस्थता कर, संधि करा सके   
और कहे, कि जाओ तीनों साथ मिल कर रहो   
आपसी रंजिश से सिर्फ़ विफल होगे   
जाओ, ज़िन्दगी और सपने मिलकर   
ख़ुद अपनी हक़ीक़त बनाओ।    
इन सभी को देखता वक़्त, ठठाकर हँसता है   
बदलता नहीं क़ानून   
किसी के सपनों की ताबीर के लिए 
कोई संशोधन नहीं   
बस सज़ा मिल सकती है   
इनाम का कोई प्रावधान नहीं   
कुछ नहीं कर सकते तुम   
या तो जंग करो या फिर पलायन   
सभी मेरे अधीन, बस एक मैं सर्वोच्च हूँ!   
सच है सभी का गुमान   
बस कोई तोड़ सकता है   
तो वो, वक़्त है!   

जेन्नी शबनम (25. 4. 2012) 
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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

342. कोई हिस्सेदारी नहीं

कोई हिस्सेदारी नहीं

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मेरे सारे तर्क 
कैसे एक बार में एक झटके से 
ख़ारिज कर देते हो 
और कहते कि तुम्हें समझ नहीं,
जाने कैसे 
अर्थहीन हो जाता है मेरा जीवन 
जबकि परस्पर 
हर हिस्सेदारी बराबर होती है,
सपने देखना और जीना 
साथ ही तो शुरू हुआ 
रास्ते के हर पड़ाव भी साथ मिले 
साथ ही हर तूफ़ान को झेला 
जब भी हौसले पस्त हुए 
एक दूसरे को सहारा दिया,
अब ऐसा क्यों 
कि मेरी सारी साझेदारी बोझ बन गई 
मैं एक नाकाम 
जिसे न कोई शऊर है न तमीज़ 
जिसका होना, तुम्हारे लिए 
शायद ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल है,
बहरहाल 
ज़िन्दगी है 
सपने हैं 
शिकवे हैं 
पंख है 
परवाज़ है 
मगर अब हमारे बीच 
कोई हिस्सेदारी नहीं!

- जेन्नी शबनम (21. 4. 2012)
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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

341. अंतिम परिणति

अंतिम परिणति

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बाबू! तुम दूर जो गए
सपनों से भी रूठ गए
कर जोड़ गुहार मेरी
तनिक न ली सुध मेरी
लोर बहते नहीं अकारण
जानते हो तुम भी कारण
हर घड़ी है अंतिम पल
जाने कब रुके समय-क्रम।  

बाबू! तुम क्यों नही समझते
पीर मेरी जो मन दुखाते
तुम्हारे जाने यही उचित
पर मेरा मन करता भ्रमित
एक बार तुम आ जाना
सपने मेरे तुम ले आना
तुम्हारी प्रीत मन में बसी
भले जाओ तुम रहो कहीं। 

बाबू! देखो जीवन मेरा
छवि मेरी छाया तुम्हारा
संग-संग भले हैं दिखते
छाया को भला कैसे छूते
दर्पण देख ये भान होता
नहीं विशेष जो तुम्हें खींचता
बिछोह-रुदन बन गई नियति
प्रेम-कथा की अंतिम परिणति!

- जेन्नी शबनम (16. 4. 2012)
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रविवार, 15 अप्रैल 2012

340. आम आदमी के हिस्से में

आम आदमी के हिस्से में

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सच है
पेट के आगे हर भूख
कम पड़ जाती है
चाहे मन की हो या तन की
और यह भी सच है
इश्क़ करता
तो यह सब कहाँ कर पाता
इश्क़ में कितने दिन ख़ुद को
ज़िंन्दा रख पाता
वक़्त से थका-हारा
दिन भर पसली घिसता
रोटी जुटाए या दिल में फूल उपजाए 
देह में जान कहाँ बचती
जो इश्क़ फरमाए
सच है
आम आदमी के हिस्से में
इश्क़ भी नहीं!

- जेन्नी शबनम (15. 4. 2012)
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गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

339. बेसब्र इंतज़ार (क्षणिका)

बेसब्र इंतज़ार 

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कितने सपने कितने इम्तहान
अगले जन्म का बेसब्र इंतज़ार
कमबख़्त ये जन्म तो ख़त्म हो। 

- जेन्नी शबनम (12. 4. 2012)
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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

338. फूल कुमारी उदास है (पुस्तक - 72)

फूल कुमारी उदास है

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एक था राजा एक थी रानी
उसकी बेटी थी फूल कुमारी
फूल कुमारी जब उदास होती...
पढ़ते सुनते, बरस बीत गए
कहानी में, फूल कुमारी उदास होती है
और फिर उसकी हँसी लौट आती है,
सच की दुनिया में
फूल कुमारी की उदासी
आज भी क़ायम है
कोई नहीं आता जो उसकी हँसी लौटाए,
कहानी की फूल कुमारी को हँसाने के लिए
समस्त प्रदेश तत्पर है
फूल कुमारी की हँसी में देश की हँसी शामिल है
फूल कुमारी की उदासी से
पेड़-पौधे भी उदास हो जाते हैं
जीव-जंतु भी और समस्त प्रजा भी,
वक़्त ने करवट ली
दुनिया बदल गई
हँसाने वाले रोबोट आ गए
पर एक वो मसख़रा न आया
जो उस फूलकुमारी की तरह हँसा जाए,
कहानी वाला मसख़रा
क्यों जन्म नहीं लेता?
आख़िर कब तक फूल कुमारी उदास रहेगी
कब तक राजा रानी
अपनी फूलकुमारी के लिए उदास रहेंगे,
अब की फूलकुमारी, उदास होती है तो
कोई और दुखी नहीं होता
न कोई हँसाने की चेष्टा करता है,
सच है, कहानी सिर्फ़ पढ़ने के लिए होती है
जीवन में नहीं उतरती
कहानी कहानी है
ज़िन्दगी ज़िन्दगी!
कहानी की फूलकुमारी
ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ से गढ़ी गई थी
जिसके जीवन की घटनाएँ 
मनमाफ़िक मोड़ लेती हैं,
साँस लेती हाड़ मांस की फूलकुमारी
जिसके लिए पूर्व निर्धारित मानदंड हैं
जिसके वश में न हँसना है न उदास होना
न उम्मीद रखना
उसकी उदासी की परवाह कोई नहीं करता,
फूल कुमारी उदास थी
फूल कुमारी उदास है!

- जेन्नी शबनम (2. 4. 2012)
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सोमवार, 2 अप्रैल 2012

337. तुम्हारा तिलिस्म

तुम्हारा तिलिस्म

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धुँध छट गई है
मौसम में फगुनाहट घुल गई है

आँखों में सपने मचल रहे हैं
रगों में हलकी तपिश महसूस हो रही है
जाने क्या हुआ है
पर कुछ तो हुआ है
जब भी थामा तुमने मैं मदहोश हो गई
नहीं मालूम कब
तुम्हारे आलिंगन की चाह ने
मुझमें जन्म लिया
और अब ख़यालों को
सूरत में बदलते देख रही हूँ
शब्द सदा की तरह अब भी मौन हैं
नहीं मालूम अनकहा तुम समझ पाते हो या नहीं
जाने तुमने मेरे मन को जाना या नहीं
या मैं सिर्फ़ बदन बन पाई तुम्हारे लिए
क्या जाने वक़्त की जादूगरी है
या तुम्हारा तिलिस्म
स्वीकार है मुझे
चाहे जिस रूप में तुम चाहो मुझे। 

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2012)
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