रविवार, 30 अगस्त 2020

682. ज़िन्दगी के सफ़हे (क्षणिका)

ज़िन्दगी के सफ़हे 

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ज़िन्दगी के सफ़हे पर चिंगारी धर दी किसी ने   
जो सुलग रही है धीरे-धीरे   
मौसम प्रतिकूल है, आँधियाँ विनाश का रूप ले चुकी हैं   
सूरज झुलस रहा है, हवा और पानी का दम घुट रहा है   
सन्नाटों से भरे इस दश्त में 
क्या ज़िन्दगी के सफ़हे सफ़ेद रह पाएँगे?   
झुलस तो गए हैं, बस राख बनने की देर है।   

- जेन्नी शबनम (30. 8. 2020) 
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