रविवार, 1 मार्च 2009

32. अपनी हर बात कही (तुकान्त)

अपनी हर बात कही

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समेट ख़ुद को सीने में उसके, अपने सारे हालात कही
तर कर उसका सीना, अपना मन, अपनी हर बात कही। 

शाया किया अपने सुख-दुःख, उसके ईमान पर
पढ़ ले मेरा हर ग़म, बिना शब्द, अपनी हर बात कही। 

आस भरी नज़रें उठीं जब, उसकी बाहें थामने को
थी तन्हा, अपने सीने से लिपटी, ख़ुद से ही थी अपनी हर बात कही। 

अच्छा है कोई न जाना, ये मेरा अपना संसार है
आस-पास नहीं कहीं कोई, ख़ुद से ही अपनी हर बात कही। 

बिन सरोकार सुने क्यों कोई, बस एक उम्र की ही तो बात नहीं
जवाब से परे हर सवाल है, फिर भी अपनी हर बात कही। 

जन्मों का हिसाब है करना, जाने क्या-क्या और है कहना
रोज़ लिपटती, रोज़ सुबकती, रोज़ ख़ुद से ही अपनी हर बात कही। 

- जेन्नी शबनम (17. 9. 2008)
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