बुधवार, 29 जून 2016

517. अनुभव (क्षणिका)

अनुभव  

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दोराहे, निश्चित ही द्वन्द्व पैदा करते हैं  
एक राह छलावा का, दूसरा जीवन का  
इनमें कौन सही  
इसका पता दोनों राहों पर चलकर ही होता है  
फिर भी, कई बार अनुभव धोखा दे जाता है  
और कोई पूर्वाभास भी नहीं होता   

- जेन्नी शबनम (29. 6. 2016)  
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शनिवार, 18 जून 2016

516. मन-आँखों का नाता (5 सेदोका)

मन-आँखों का नाता  
(5 सेदोका)
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1.
गहरा नाता  
मन-आँखों ने जोड़ा  
जाने दूजे की भाषा,  
मन जो सोचे -  
अँखियों में झलके  
कहे संपूर्ण गाथा !  

2.
मन ने देखे  
झिलमिल सपने  
सारे के सारे अच्छे,  
अँखियाँ बोलें -  
सपने तो सपने  
नहीं होते अपने !  

3.  
बावरा मन  
कहा नहीं मानता  
मनमर्ज़ी करता,  
उड़ता जाता  
आकाश में पहुँचे  
अँखियों को चिढ़ाए !  

4.  
आँखें ही होती  
यथार्थ हमजोली  
देखे अच्छी व बुरी  
मन बावरा  
आँखों को मूर्ख माने  
धोखा तभी तो खाए !  

5.  
मन हवा-सा  
बहता ही रहता  
गिरता व पड़ता,  
अँखियाँ रोके
गुपचुप भागता  
चाहे आसमाँ छूना !  

- जेन्नी शबनम (18. 6. 2016)

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गुरुवार, 16 जून 2016

515. तय नहीं होता (तुकांत)

तय नहीं होता

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कोई तो फ़ासला है जो तय नहीं होता  
सदियों का सफ़र लम्हे में तय नहीं होता   

अजनबी से रिश्तों की गवाही क्या  
महज़ कहने से रिश्ता तय नहीं होता 

गगन की ऊँचाइयों पर सवाल क्यों  
यूँ शिकायत से रास्ता तय नहीं होता   

कुछ तो दरमियाँ दूरी रही अनकही-सी  
उम्र भर चले पर फ़ासला तय नहीं होता  

तक़दीर मिली मगर ज़रा तंग रही  
कई जंग जन्मों में तय नहीं होता   

बाख़बर भ्रम में जीती रही 'शब' हँसके  
मन की गुमराही से जीवन तय नहीं होता   

- जेन्नी शबनम (16. 6. 2016)  
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शनिवार, 4 जून 2016

514. सूरज नासपिटा (चोका - 7)

सूरज नासपिटा   

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सूरज पीला  
पूरब से निकला  
पूरे रौब से  
गगन पे जा बैठा,  
गोल घूमता  
सूरज नासपिटा  
आग बबूला  
क्रोधित हो घूरता,  
लावा उगला  
पेड़-पौधा जलाए  
पशु-इंसान  
सब छटपटाए  
हवा दहकी  
धरती भी सुलगी  
नदी बहकी  
कारे बदरा ने ज्यों  
ली अँगड़ाई  
सावन घटा छाई  
सूरज चौंका  
''मुझसे बड़ा कौन?  
मुझे जो ढँका'',  
फिर बदरा हँसा  
हँस के बोला -  
''सुनो, सावन आया  
मैं नहीं बड़ा  
प्रकृति का नियम  
तुम जलोगे  
जो आग उगलोगे  
तुम्हें बुझाने  
मुझे आना ही होगा'',  
सूरज शांत  
मेघ से हुआ गीला  
लाल सूरज  
धीमे-धीमे सरका  
पश्चिम चला  
धरती में समाया  
गहरी नींद सोया !  

- जेन्नी शबनम (20. 5. 2016)  

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