झरोखा
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समय का यह दौर
जीवन की अहमियत, जीवन की ज़रुरत सिखा रहा है,
मुश्किल के इस रंगमहल में
आशाओं का एक झरोखा, जिसे पत्थर का महल बनाने में
सदियों पहले बंद किया था हमने
अब खोलने का वक़्त आ गया है,
ताकि एक बार फिर लौट सके, सपनों का सुन्दर संसार
सूरज की किरणों की बौछार
बारिश की बूंदों की फुहार,
हो सके चाँदनी की आवाजाही
आ सके हवाएँ झूमती-नाचती-गाती,
हम ताक सकें आसमान में चाँद-तारों की बैठक
आकृतियाँ गढ़ती बादलों की जमात
पक्षियों का कलरव
रास्ते से गुजरता इंसानी रेला
हमारी ज़रूरतों के सामानों का ठेला,
हम सुन सकें हवाओं का नशीला राग
बादलों की गड़गड़ाहट
धूल मिट्टी की थाप
प्रार्थना की गुहार
पड़ोसी की पुकार
रँभाते मवेशियों की तान
गोधूलि में पशुओं के खुरों और घंटियों की धुन,
हम मिला सकें कोयल के साथ कूउउ-कूउउ
हम चिढ़ा सके कौओं को काँव-काँव,
हम कर सकें कोई ऐसी चित्रकारी
जिसमें खूबसूरत नीला आसमान, गेरुआ रंग धारण कर लेता है
पौधों की हरियाली में रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं
कोई बच्चा लाड़-दुलार से माँ की गोद में जा सिमटता है,
हम बसा सकें सपनों के बड़े-बड़े चौबारे पर
कोई अचम्भित करने वाली कामनाएँ,
ओह! कितना कुछ था जिसे खोया है हमने
मन के झरोखों को बंदकर
कृत्रिमता से लिपटकर
पत्थर के आशियाने में सिमटकर,
अब समझ आ गया है
अब समझ आ गया है
जीवन की क्षणभंगुरता, कायनात की शिक्षा,
खोल ही दो सबको
आने दो झरोखे से वह सब
जिसे हमने ख़ुद ही गँवाया था,
खोल दो झरोखा।
- जेन्नी शबनम (26. 4. 2020)
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